तबस्सुम चेहरे पर लाकर हलाक़ करते हैं ,
अकलमंद ऐसे दुनिया में तबाही करते हैं .
बरकंदाज़ी करते ये फरीकबंदी की ,
इबादत गैरों की अपनों से फरक करते हैं .
फ़रेफ्ता अपना ही होना फलसफा इनके जीवन का ,
फर्जी फरजानगी की शख्सियत ये रखते हैं .
मुनहसिर जिस सियासत के मुश्तरक उसमे सब हो लें ,
यूँ ही मौके-बेमौके फसाद करते हैं .
समझते खुद को फरज़ाना मुकाबिल हैं न ये उनके,
जो अँधेरे में भी भेदों पे नज़र रखते हैं .
तखैयुल पहले करते हैं शिकार करते बाद में ,
गुप्तचर मुजरिम को कुछ यूँ तलाश करते हैं .
हुआ जो सावन में अँधा दिखे है सब हरा उसको ,
ऐसे रोगी जहाँ में क्यूं यूँ खुले फिरते हैं .
रश्क अपनों से रखते ये वफ़ादारी करें उनकी ,
मिटाने को जो मानवता उडान भरते हैं .
हकीकत कहने से पीछे कभी न हटती ''शालिनी''
मौजूं हालात आकर उसमे ये दम भरते हैं .
शब्दार्थ-तखैयुल -कल्पना ,फसाद-लड़ाई-झगडा ,फरज़ाना -बुद्धिमान ,मुनहसिर-आश्रित ,बरकंदाज़ी -चौकीदारी ,रश्क-जलन ,फरक-भेदभाव .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
15 comments:
वाह!
आपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 25-02-2013 को चर्चामंच-1166 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बढिया संदर्भ
अच्छी रचना
अच्छी रचना !!
behatareen bhavo, vicharon ,aur shabdo se yukt sundar prastuti
सुन्दर प्रस्तुति |
आभार ||
बहुत सुन्दर ....
वाह ... बहुत ही बढिया।
तमाम अशआर बला की खूब सूरती मुख्तलिफ अंदाज़ लिए हैं .खूबसूरत हैं अंदाज़ आपके .अंदाज़े बयाँ आपका .हर शैर एक अलग रवानी लिए हुए है .
तमाम अशआर बला की खूब सूरती मुख्तलिफ अंदाज़ लिए हैं .खूबसूरत हैं अंदाज़ आपके .अंदाज़े बयाँ आपका .हर शैर एक अलग रवानी लिए हुए है .
sarahne ke liye aap sabhi ka hardik dhanyawad.
sarahne ke liye aap sabhi ka hardik dhanyawad.
बहुत खुबसूरत
latest postमेरी और उनकी बातें
हुआ जो सावन में अँधा दिखे है सब हरा उसको ,
ऐसे रोगी जहाँ में क्यूं यूँ खुले फिरते हैं .
वाह ! हासिलेगज़ल शेर....
शानदार गज़ल...
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 27/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
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