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मुशायरा::: नॉन-स्टॉप

Friday, January 25, 2013

फहराऊं बुलंदी पे ये ख्वाहिश नहीं रही .


फ़िरदौस इस वतन में फ़रहत नहीं रही ,
पुरवाई मुहब्बत की यहाँ अब नहीं रही .

Flag Foundation Of IndiaFlag Foundation Of India

नारी का जिस्म रौंद रहे जानवर बनकर ,
हैवानियत में कोई कमी अब नहीं रही .


 फरियाद करे औरत जीने दो मुझे भी ,
इलहाम रुनुमाई को हासिल नहीं रही .



अंग्रेज गए बाँट इन्हें जात-धरम में ,
इनमे भी अब मज़हबी मिल्लत नहीं रही .


 फरेब ओढ़ बैठा नाजिम ही इस ज़मीं पर ,
फुलवारी भी इतबार के काबिल नहीं रही .


 लाये थे इन्कलाब कर गणतंत्र यहाँ पर ,
हाथों में जनता के कभी सत्ता नहीं रही .


  वोटों में बैठे आंक रहे आदमी को वे ,
खुदगर्जी में कुछ करने की हिम्मत नहीं रही .


  इल्ज़ाम लगाते रहे ये हुक्मरान पर ,
अवाम अपने फ़र्ज़ की खाहाँ नहीं रही .  


फसाद को उकसा रहे हैं रहनुमा यहाँ ,
ये थामे मेरी डोर अब हसरत नहीं रही .


 खुशहाली ,प्यार,अमन बांटा फहर-फहर कर ,
भारत की नस्लों को ये ज़रुरत नहीं रही . 



गणतंत्र फ़साना बना हे ! हिन्दवासियों ,
जलसे से जुदा हाकिमी कीमत नहीं रही .

 
तिरंगा कहे ''शालिनी'' से फफक-फफक कर ,
फहराऊं बुलंदी पे ये ख्वाहिश नहीं रही .

 

शब्द अर्थ -फ़िरदौस-स्वर्ग ,पुरवाई-पूरब की ओर से आने वाली हवा ,इलहाम -देववाणी ,ईश्वरीय प्रेरणा ,रुनुमाई-मुहं दिखाई ,इन्कलाब -क्रांति ,खाहाँ -चाहने वाला ,मिल्लत-मेलजोल ,हाकिमी -शासन सम्बन्धी ,फ़साना -कल्पित साहित्यिक रचना ,इतबार-विश्वास ,नाजिम-प्रबंधकर्ता ,मंत्री ,फुलवारी-बाल बच्चे ,
        शालिनी कौशिक
            [कौशल]









Tuesday, January 22, 2013

तू है सबसे जुदा तू है सबसे बड़ा / अल-मदद अल-मदद या ख़ुदा या ख़ुदा

मुश्किलों में सदा  है मुश्किल कुशा
अल-मदद अल-मदद या ख़ुदा  या ख़ुदा

हुक्मरानी तेरी हर जगह हर घड़ी
कोई शै कोई हस्ती न तुझ से बड़ी

तू है सबसे जुदा तू है सबसे बड़ा
अल-मदद अल-मदद या ख़ुदा  या ख़ुदा

(फेसबुक से साभार)

Monday, January 21, 2013

अल्लाह दुआ हम सबकी है बस एक करकरे पैदा कर


आज गृह मंत्री शिंदे साहब के बयान शहीद करकरे साहिब की याद आ गयी! इमरान प्रतापगढ़ी साहिब की मशहूर नज़्म गौर करे :-

मज़हब की ठेकेदारी से ,नफरत की पैरोकारी से ,
जो दूर रहें मज़हब और धर्मों की हर रिश्तेदारी से ,
"कामते साहब" "सालसकर" से कुछ नए सरफिरे पैदा कर ,
अल्लाह दुआ हम सबकी है एक और "करकरे" पैदा कर ,
जो समझ सके कि दहशत का एक और चेहरा होता है ,
अफ़सोस मगर एक "ख़ास कौम" के सर पर सेहरा होता है ,
जिसकी खातिर दहशतगर्दी का मतलब दहशतगर्दी हो ,
जिसे किसी न जात न किसी कौम से कोई भी हमदर्दी हो ,
नफरत की परिभाषा बदले ,कुछ नए दायरे पैदा कर ,
अल्लाह दुआ हम सबकी है एक और करकरे .................
जिसकी क़ुरबानी भारत में हम सदियों सदियों याद करे ,
जिसकी इंसाफ परस्ती को हम गलियों गलियों याद करे ,
मौला हम सब होंठो पर मासूम दुआएं बची रहे ,
कविता (करकरे ) जैसी हिंदुस्तान में लाखों माएं बची रहें ,
मोदी ,कसाब ,न तोगड़िया ,न कोई ठाकरे पैदा कर ,
अल्लाह दुआ हम सबकी है बस एक करकरे पैदा कर !

हिंदुस्तान जिंदाबाद !

Monday, January 7, 2013

राम के भक्त कहाँ, बन्दा-ए- रहमान कहाँ

फेसबुक से साभार -






राम के भक्त कहाँ, बन्दा-ए- रहमान कहाँ
तू भी हिंदू है कहाँ, मैं भी मुसलमान कहाँ

तेरे हाथों में भी त्रिशूल है गीता की जगह
मेरे हाथों में भी तलवार है कुरआन कहाँ

तू मुझे दोष दे, मैं तुझ पे लगाऊँ इलज़ाम
ऐसे आलम में भला अम्न का इम्कान कहाँ


आज तो मन्दिरो मस्जिद में लहू बहता है
पानीपत और पलासी के वो मैदान कहाँ


कर्फ्यू शहर में आसानी से लग सकता है
सर छुपा लेने को फुटपाथ पे इंसान कहाँ


किसी मस्जिद का है गुम्बद, के कलश मन्दिर का
इक थके-हारे परिंदे को ये पहचान कहाँ


पहले इस मुल्क के बच्चों को खिलाओ खाना
फिर बताना उन्हें पैदा हुए भगवान कहाँ