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मुशायरा::: नॉन-स्टॉप

Thursday, December 19, 2013

अब आ पड़ी मियां की जूती मियां के सर .

Muslim bride and groom at the mosque during a wedding ceremony - stock photo
फिरते थे आरज़ू में कभी तेरी दर-बदर ,
अब आ पड़ी मियां की जूती मियां के सर .
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लगती थी तुम गुलाब हमको यूँ दरअसल ,
करते ही निकाह तुमसे काँटों से भरा घर .
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पहले हमारे फाके निभाने के थे वादे ,
अब मेरी जान खाकर तुम पेट रही भर .
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कहती थी मेरे अपनों को अपना तुम समझोगी ,
अब उनको मार ताने घर से किया बेघर .
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पहले तो सिर को ढककर पैर बड़ों के छूती ,
अब फिरती हो मुंह खोले न रहा कोई डर .
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माँ देती है औलाद को तहज़ीब की दौलत ,
मक्कारी से तुमने ही उनको किया है तर .
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औरत के बिना सूना घर कहते तो सभी हैं ,
औरत ने ही बिगाड़े दुनिया में कितने नर .
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माँ-पिता,बहन-भाई हिल-मिल के साथ रहते ,
आये जो बाहरवाली होती खटर-पटर .
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जीना है जो ख़ुशी से अच्छा अकेले रहना ,
''शालिनी ''चाहे मर्दों के यूँ न कटें पर .
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शालिनी कौशिक
[WOMAN ABOUT MAN]

Saturday, November 2, 2013

यूँ इक सबक़-ए-महर-ओ-वफ़ा छोड़ गए हम

यूँ इक सबक़-ए-महर-ओ-वफ़ा छोड़ गए हम
हर राह में नक़्श-ए-कफ़-ए-पा छोड़ गए हम

दुनिया तेरे क़िर्तास पे क्या छोड़ गए हम
इक हुस्न-ए-बयाँ हुस्न-ए-अदा छोड़ गए हम

माहौल की ज़ुल्मात में जिस राह से गुज़रे
क़िंदील-ए-मोहब्बत की ज़िया छोड़ गए हम

बेगाना रहे दर्द-ए-मोहब्बत की दवा से
ये दर्द ही कुछ और सिवा छोड़ गए हम

थी सामने आलाइश-ए-दुनिया की भी इक राह
वो ख़ूबी-ए-क़िस्मत से ज़रा छोड़ गए हम

इक हुस्न-ए-दकन था के निगाहों से न छूटा
हर हुस्न को वरना बा-ख़ुदा छोड़ गए हम

रचनाकार: जगन्नाथ आज़ाद

Saturday, August 10, 2013

तमन्नाओं के बाज़ार में

तमन्नाओं के बाज़ार में
दुकानें तो बहुत सजाई मैंने
मगर खरीददार नहीं आया कोई
जो भी आया बेचैनी बेच गया 
बदले में सुकून ले गया
पहले ही मुफलिस-ऐ -सुकून था
अब पूरी तरह मुफलिस हो गया

मुफलिस,तमन्ना,मुफलिस--सुकून,सुकून
डा.राजेंद्र तेला,निरंतर

Thursday, August 8, 2013

ईद मुबारक के साथ ही सभी को हरियाली तीज की शुभकामनायें

Eid-Mubarak-Flowers-HD-Wallpapers 2013 Fb Facebook Pics Beautiful

ईद मुबारक के  साथ ही सभी को हरियाली तीज की  शुभकामनायें 

 मुबारकबाद सबको दूँ ,जुदा अंदाज़ हैं मेरे ,
महक इस मौके में भर दूँ ,जुदा अंदाज़ हैं मेरे ,
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मुब्तला आज हर बंदा ,महफ़िल -ए -रंग ज़माने में ,
मिलनसारी यहाँ भर दूँ ,जुदा अंदाज़ हैं मेरे ,
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मुक़द्दस दूज का महताब ,मुकम्मल हो गए रमजान ,
शमा हर रोशन अब कर दूँ ,जुदा अंदाज़ हैं मेरे ,
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रहे मज़लूम न कोई ,न हो मज़रूह हमारे से ,
मरज़ हर दूर अब कर दूँ ,जुदा अंदाज़ हैं मेरे .
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ईद खुशियाँ मनाने को ,ख़ुदा का सबको है तौहफा ,
मिठास मुरौव्वत की भर दूँ ,जुदा अंदाज़ हैं मेरे .
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भुलाकर मज़हबी मुलम्मे ,मुहब्बत से गले मिल लें ,
मुस्तहक यारों का कर दूँ ,जुदा अंदाज़ हैं मेरे .
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फ़तह हो बस शराफत की ,तरक्की पाए बस नेकी ,
फरदा यूँ हरेक कर दूँ ,जुदा अंदाज़  हैं मेरे .
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फरहत बख्शे फरिश्तों को ,खुदा खुद ही यहाँ आकर ,
फलक इन नामों से भर दूँ ,जुदा अंदाज़ हैं मेरे .
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फ़िरासत से खुदा भर दे ,बधाई ''शालिनी ''जो दे ,
फिर उसमे फुलवारी भर दूँ ,जुदा अंदाज़ हैं मेरे .
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शब्दार्थ -मजलूम -अत्याचार से पीड़ित ,मजरूह-घायल ,मुरौव्वत-मानवता ,मुलम्मे-दिखावे ,मुस्तहक-अधिकारी ,फरदा -आने वाला  दिन ,फरहत-ख़ुशी ,फरिश्तों -सात्विक वृति वाला व्यक्ति। फ़िरासत -समझदारी।   
    और ईद मुबारक के  साथ ही सभी को हरियाली तीज की  शुभकामनायें 


   
                             शालिनी कौशिक 
                                          [कौशल ]

Saturday, July 20, 2013

यही वो वाहिद प्यार है जिस में बेवफ़ाई नहीं होती eternal love


फ़ना  कर दे अपनी सारी ज़िन्दगी ख़ुदा  की मुहब्बत में 
यही वो वाहिद प्यार है जिस में बेवफ़ाई नहीं होती 

अर्थ:
वाहिद-एक 

Monday, July 15, 2013

Sunday, July 7, 2013

गालिबन ये हमारी ही ,करम रेखों का साया है .



A Hindu devotee tries to take a holy dip in the flooded waters of river Ganges in the northern Indian town of Haridwar
गरजकर ऐसे आदिल ने ,हमें गुस्सा दिखाया है .

ख़ुदा ने आज़माया है ,अज़ाब हम पर आया है .
किया अजहद ज़ुल्म हमने ,अदम ने ये बताया है .


कस्साबी नारी सहे ,मुहं सी आदमजाद  की .
इन्तहां ज़ुल्मों की उसपर ,उफान माँ का लाया है .




करे खिलवाड़ कुदरत से ,आज के इन्सां बेखटके ,
खेल अपना दिखा रब ने ,कहकहा यूँ लगाया है .


गेंहू के संग में है पिसती ,सदा घुन ही ये बेचारी ,
किसी की कारस्तानी का ,किसी को फल चखाया है .


लूटकर बन्दों को उसके ,खजाने अपने हैं भरते ,
सभी को जाना है खाली ,काहे इतना जुटाया है .


खबीस काम कर-करके ,खरा करने मुकद्दर को ,
पहुंचना रब की चौखट पर ,बवंडर ये मचाया है .


कुफ्र का बढ़ना आदम में ,समझना खिलक़त से बढ़कर ,
चूर करने को मदहोशी ,सबक ऐसे सिखाया है .


गज़ब पड़ना अजगैबी का ,हदें टूटी बर्दाश्त की ,
गरजकर ऐसे आदिल ने ,हमें गुस्सा दिखाया है .


समझ लें आज कबीले ,सहमकर कहती ''शालिनी '',
गालिबन ये हमारी ही ,करम रेखों का साया है .


शब्दार्थ-अजगैबी-दैवी ,अजहद-बहुत ,आज़माना -परीक्षा लेना ,अज़ाब-पाप के बदले में मिलने वाला फल ,अदम-परलोक,काहे -किसलिए ,उफान-उबाल,आदमजाद-आदमी,आदिल-इंसाफ करने वाला ,कस्साबी-कसाई का काम ,कुफ्र-नास्तिकता ,खबीस-नापाक,खरा -निष्कपट,गज़ब पड़ना -अचानक भरी संकट पड़ना ,गालिबन-सम्भावना है कि,करम रेख-भाग्य में लिखी हुई बात .

     शालिनी कौशिक 
             [कौशल]


Monday, July 1, 2013

कल उनकी पीढियां तक इस्तेकबाल करेंगी .

orange rosesbouquet of spring roses 1


   न बदल पायेगा तकदीर तेरी कोई और ,
      तेरे हाथों में ही बसती है तेरी किस्मत की डोर ,
   अगर चाहेगा तो पहुंचेगा तू बुलंदी पर 
      तेरे जीवन में भी आएगा तरक्की का एक दौर .


तू अगर चाहे झुकेगा आसमां भी सामने ,
    दुनिया तेरे आगे झुककर सलाम करेगी .
 जो आज न पहचान सके तेरी काबिलियत ,
      कल उनकी पीढियां तक इस्तेकबाल करेंगी .


तकदीर बनाने के लिए सुनले मेहरबां,
     दिल में जीतने का हमें जज्बा चाहिए .
छूनी है अगर आगे बढ़के तुझको बुलंदी 
      क़दमों में तेरे जोश और उल्लास चाहिए .


मायूस होके रुकने से कुछ होगा न हासिल ,
    उम्मीद के चिराग दिल में जलने चाहियें .
चूमेगी कामयाबी आके माथे को तेरे 
     बस इंतजार करने का कुछ सब्र चाहिए .


क्या देखता है बार-बार हाथों को तू अपने ,
   रेखाओं में नहीं बसती है तकदीर किसी की .
गर करनी है हासिल तुझे जीवन में बुलंदी 
   मज़बूत इरादों को बना पथ का तू साथी .

             शालिनी कौशिक 

                    [कौशल]

Thursday, June 27, 2013

बजरिये बख्शीश-ए-लोहा ,सोयी जनता जगायेंगे .


If Narendra Modi and Rahul Gandhi are all we get as options for prime minister, any other leader from the yet to be formed Third Front for the top job is not unwelcome at all. Neither the Congress-it\'s still cagey about its choice-nor the BJP-it has more or less decided on Modi-present us with a choice that is difficult to resist.

Neither Modi nor Rahul fit into the definition of a leader of a country with huge complexities. The latter is still discovering and making sense of India and the former firmly believes that India is an extension of Gujarat and all intricate problems confronting India, be it the area of economy or foreign affairs, render themselves to simplistic solutions. Both pretend to be outsiders impatient with the state of the polity. Both want to be the agent of the great change, but neither the powerful articulation of Modi nor the indecipherable silence of Rahul really tell us whether they are good enough for the task.
 Gandhinagar: Gujarat Chief Minister Narendra Modi today announced a nation-wide campaign to collect small pieces of iron from farmers for using it to build the proposed \'Statue of Unity\' in the memory of Sardar Vallabhbhai Patel.
 
On the day of Sardar Patel\'s birth anniversary on 31 October 2013, we will launch a nation-wide campaign, covering more than five lakh villages throughout the country to collect small pieces of iron of any tool used by farmers from each village, that will be used in the building the statue, Modi said in Gandhinagar before his inaugural address at the all India conference on livestock and dairy development 
बजरिये बख्शीश-ए-लोहा ,सोयी जनता जगायेंगे .
फिर एक नयी इबारत गढ़ ,साथ सबको ले आयेंगे .


भले ही दृढ इरादों ने ,उन्हें लौह-पुरुष बनाया था ,
ढालकर उनको मूरत में ,लोहा तो ये दिलवाएंगे .


मिटटी के लौंदे में लिपटे ,वे तो साधारण मानव थे .
महज़ लोहमय शख्सियत को ,लोहसार ये बनायेंगे .


मुखालिफ ने लगायी थी ,शहर में खुद की ही मूरत .
उसने खुद दम पर था खाया ,ये दूजे का खा जायेंगे .


उड़ायें ये मखौल उनके ,जो बनके लग गए हैं मूरत .
भला खुद बनवाये बुत की ,हंसी को रोक पाएंगे .


न खाने को हैं दो रोटी ,न तन ढकने को हैं कपडे .
ऐसे में इन इरादों से ,क्या जीवन ये दे पाएंगे .


फैलसूफी  में अपनी ये ,रहनुमा बनने आये हैं .
राहजनी खुलेआम करके ,उड़नछू ये हो जायेंगे .


रियाया अपनी समझकर ,रियायत ऐसे करते हैं .
साँस की एवज में लोहा ,ये सबसे लेकर जायेंगे .


बघंबर पहनकर आये ,असल में ये हैं सौदागर .
''शालिनी''ही नहीं इनको ,सभी पहचान जायेंगे .

शब्दार्थ:-बजरिये-के द्वारा ,बख्शीस-दान,लोहसार -फौलाद,इस्पात ,फैलसूफी-धूर्तता ,रियाया -प्रजा ,रियायत-मेहरबानी ,बघंबर-बाघ की खाल

   शालिनी कौशिक


Sunday, June 23, 2013

है जुदाई अगर उनकी किस्मत में ,बखुशी दूर जायेंगे हम भी .



Modi vs Nitish?

           मोदी और नीतीश

     कितने दूर कितने पास   


तोहमतें लगनी हों तो लगती रहें ,तुनक मिज़ाजी दिखाएंगें हम भी .
है जुदाई अगर उनकी किस्मत में ,बखुशी दूर जायेंगे हम भी .



हम न करते हैं बात मज़हब की ,अपने ख्वाबों में महज़ कुर्सी है .
अपना हीरा क़ुबूल उनको नहीं ,उनके सौदे से दूर हैं हम भी .


बात बिगड़ी थी अभी थोड़ी सी ,धीरे धीरे संभल ही जाएगी .
बात मानी अगर यूँ गैरों की ,क्या पता दूर जा गिरें हम भी .


बगावत नहीं हैं कर सकते ,हमारी भी है मजबूरी .
नहीं मुहं खोलेंगे अपना ,कसम अब खाते हैं हम भी .


सियासत करनी है हमको ,नहीं थियेटर चलाना है .
बिताने को जहाँ दो पल ,देख कुछ लेते थे हम भी .


आज जिसकी रेटिंग ज्यादा ,सभी उसके पीछे भागें .
लगाकर पूरे दम ख़म को ,भागते फिर रहे हम भी .


''शालिनी''की नहीं केवल ,ये पूरे भारत की मंशा .
मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी .


शब्दार्थ :तुनक मिज़ाजी-चिडचिडापन ,बखुशी-प्रसन्नतापूर्वक .

शालिनी कौशिक 



     

Monday, June 17, 2013

रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है .



 ये राहें तुम्हें कभी तन्हा न मिलेंगीं ,
तुमने इन्हें फरेबों से गुलज़ार किया है .


ताजिंदगी करते रहे हम खिदमतें जिनकी ,
फरफंद से अपने हमें बेजार किया है .


कायम थी सल्तनत कभी इस घर में हमारी ,

मुख़्तार बना तुमको खुद लाचार किया है .


करते कभी खुशामदें तुम बैठ हमारी ,
हमने ही तुम्हें सिर पे यूँ सवार किया है .


एहसान फरामोश नहीं हम तेरे जैसे ,

बनेंगे हमसफ़र तेरे इकरार किया है .


गुर्ग आशनाई से भरे भले रहें हो संग ,
रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है .


फबती उड़ाए ''शालिनी''करतूतों पर इनकी ,
हमदर्दों को मुखौटों ने बेकार किया है .

शब्दार्थ ;गुलज़ार-चहल-पहल वाला ,ताजिंदगी-आजीवन ,गुर्ग आशनाई   -कपटपूर्ण मित्रता ,फबती उड़ाए -चुटकी लेना .

शालिनी कौशिक 

      [कौशल]


Thursday, May 23, 2013

मिला जिससे हमें जीवन उसे एक दिन में बंधवाती .




सम्मानित ब्लोगर्स 

     नमस्कार 
आप सभी से सादर अनुरोध है की आपको मेरी इस ग़ज़ल में जो भी त्रुटि एक ग़ज़ल के हिसाब से दिखें आप सभी उसका सुधार मुझे यहीं बताएं .मैं आप सभी की आभारी रहूंगी .कृपया बताएं  अवश्य .
                                       शालिनी कौशिक 



Mother : illustration of mother embracing child in Mother s Day Card Stock Photo 

तरक्की इस जहाँ में है तमाशे खूब करवाती ,
मिला जिससे हमें जीवन उसे एक दिन में बंधवाती .

महीनों गर्भ में रखती ,जनम दे करती रखवाली ,
उसे औलाद के हाथों है कुछ सौगात दिलवाती .

सिरहाने बैठ माँ के एक पल भी दे नहीं सकते ,
दिखावे में उन्हीं से होटलों में मंच सजवाती .


कहे माँ लाने को ऐनक ,नहीं दिखता बिना उसके ,
कुबेरों के खजाने में ठन-गोपाल बजवाती .

बढ़ाये आगे जीवन में दिलाती कामयाबी है ,
उसी मैय्या को औलादें, हैं रोटी को भी तरसाती .

महज एक दिन की चांदनी ,न चाहत है किसी माँ की ,
मुबारक उसका हर पल तब ,दिखे औलाद मुस्काती .

याद करना ढूंढकर दिन ,सभ्यता नहीं हमारी है ,
हमारी मर्यादा ही रोज़ माँ के पैर पुजवाती .


किया जाता याद उनको जिन्हें हम भूल जाते हैं ,
है धड़कन माँ ही जब अपनी कहाँ है उसकी सुध जाती .

वजूद माँ से है अपना ,शरीर क्या बिना उसके ,
उसी की सांसों की ज्वाला हमारा जीवन चलवाती .


शब्दों में नहीं बंधती ,भावों में नहीं बहती ,
कड़क चट्टान की मानिंद हौसले हममे भर जाती .

करे कुर्बान खुद को माँ,सदा औलाद की खातिर ,
क्या चौबीस घंटे में एक पल भी माँ है भारी पड़ जाती .



मनाओ इस दिवस को तुम उमंग उत्साह से भरकर ,
बाद इसके किसी भी दिन क्या माँ है याद फिर आती .

बाँटो ''शालिनी''के संग रोज़ गम ख़ुशी माँ के,
 फिर ऐसे पाखंडों को ढोने की नौबत नहीं आती .

              शालिनी कौशिक 
                       [कौशल]





Wednesday, May 15, 2013

अख़बारों के अड्डे ही ये अश्लील हो गए हैं .





बेख़ौफ़ हो गए हैं ,बेदर्द हो गए हैं ,
हवस के जूनून में मदहोश हो गए हैं .

चल निकले अपना चैनल ,हिट हो ले वेबसाईट ,
अख़बारों के अड्डे ही ये अश्लील हो गए हैं .


पीते हैं मेल करके ,देखें ब्लू हैं फ़िल्में ,
नारी का जिस्म दारू के अब दौर हो गए हैं .

गम करते हों गलत ये ,चाहे मनाये जलसे ,
दर्द-ओ-ख़ुशी औरतों के सिर ही हो गए हैं .

उतरें हैं रैम्प पर ये बेधड़क खोल तन को ,
कुकर्म इनके मासूमों के गले हो गए हैं .

आती न शरम इनको मर्दानगी पे अपनी ,
रखवाले की जगह गारतगर हो गए हैं .

आये कभी है पूनम ,छाये कभी सनी है ,
इनके शरीर नोटों की अब रेल हो गए हैं .

कानून की नरमी ही आज़ादी बनी इनकी ,
दरिंदगी को खुले ये माहौल हो गए हैं .

मासूम को तडपालो  ,विरोध को दबा लो ,
जो जी में आये करने में ये सफल हो गए हैं .

औरत हो या मरद हो ,झुठला न सके इसको ,
दोनों ही ऐसे जुर्मों की ज़मीन हो गए हैं .

इंसानियत है फिरती अब अपना मुहं छिपाकर ,
परदे शरम के सारे तार-तार हो गए हैं .

''शालिनी'' क्या बताये अंजाम वहशतों का ,
बेबस हों रहनुमा भी अब मौन हो गए हैं .



शालिनी कौशिक
  [कौशल]

Tuesday, April 30, 2013

एक लाजवाब मुशायरा Best mushaira in the world

पेश है एक लाजवाब मुशायरा,
क्लिक कीजिये-
http://youtu.be/KXga3bAlZiY

Thursday, April 11, 2013

मेरे क़त्ल पे आप भी चुप है, अगला नम्बर आपका है



जलते घर को देखने वालों, फूस का छप्पर आपका है,
आपके पीछे तेज़ हवा है, आगे मुकद्दर आपका है !

उस के क़त्ल पे मैं भी चुप था, मेरा नम्बर अब आया,
मेरे क़त्ल पे आप भी चुप है, अगला नम्बर आपका है !!.

~नवाज़ देवबन्दी

Tuesday, April 9, 2013

मुफ़लिस के बदन को भी है चादर की ज़रूरत

मुफ़लिस के बदन को भी है चादर की ज़रूरत
अब खुल के मज़ारों पे ये ऐलान किया जाए


Thursday, April 4, 2013

हर पार्टी ही रखे करिश्माई अदा है .

 

सियासत आज की देखो ज़ब्तशुदा है ,
हर पार्टी ही रखे करिश्माई अदा है .


औलाद कहीं बेगम हैं डोर इनकी थामे ,
जम्हूरियत इन्हीं के क़दमों पे फ़िदा है .


काबिल हैं सभी इनमे ,है सबमें ही महारत ,
पर घंटी बांधने को बस एक बढ़ा है .


इल्ज़ाम  धरें माथे ये अपने मुखालिफ के ,
पर रूप उनसे इनका अब कहाँ जुदा है .


आगे न इनसे कोई ,पीछे न खड़ा कोई ,
पर वोट-बैंक इनका अकीदत से बंधा है .

बाहर भी बैठते हैं ,भीतर भी बैठते हैं ,
मुखालफ़त का जिम्मा इनके काँधे लदा है .


जादू है ये सियासत अपनाई सब दलों ने ,
''शालिनी'' ही नहीं सबको लगती खुदा है .

            शालिनी कौशिक
                   [कौशल]

Saturday, March 9, 2013

''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर

 

आज करूँ आगाज़ नया ये अपने ज़िक्र को चलो छुपाकर ,
कदर तुम्हारी नारी मन में कितनी है ये तुम्हें बताकर .


 जिम्मेदारी समझे अपनी सहयोगी बन काम करे ,
साथ खड़ी है नारी उसके उससे आगे कदम बढाकर .



 बीच राह में साथ छोड़कर नहीं निभाता है रिश्तों को ,
अपने दम पर खड़ी वो होती ऐसे सारे गम भुलाकर .


 कैद में रखना ,पीड़ित करना ये न केवल तुम जानो ,
जैसे को तैसा दिखलाया है नारी ने हुक्म चलाकर .


 धीर-वीर-गंभीर पुरुष का हर नारी सम्मान करे ,
आदर पाओ इन्हीं गुणों को अपने जीवन में अपनाकर .


 जो बोओगे वो काटोगे इस जीवन का सार यही ,
नारी से भी वही मिलेगा जो तुम दोगे साथ निभाकर .


 जीवन रथ के नर और नारी पहिये हैं दो मान यही ,
''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर .
            
           शालिनी कौशिक
  [WOMAN ABOUT MAN]

Friday, March 1, 2013

हम वफ़ा कर रहे हैं उनकी जफ़ाओं के बाद भी -Dr. Anwer Jamal

बाक़ी हैं कुछ सज़ाएं सज़ाओं के बाद भी
हम वफ़ा कर रहे हैं उनकी जफ़ाओं के बाद भी

हमें अपने वुजूद से लड़ने का शौक़ है
हम जल रहे हैं तेज़ हवाओं के बाद भी

करता है मेरे अज़्म की मौसम मुख़ालिफ़त
धरती पे धूप आई घटाओं के बाद भी

मौत खुद आके उसकी मसीहाई कर गई
बच न पाया मरीज़ दवाओं के बाद भी

लहजे पे था भरोसा , न लफ़्ज़ों पे था यक़ीं
दिल मुतमईं हो कैसे दुआओं के बाद भी

मुन्सिफ़ से जाके पूछ लो ‘अनवर‘ ये राज़ भी
वो बेख़ता है कैसे ख़ताओं के बाद भी

शब्दार्थ : जफ़ा - बेवफ़ाई , अज़्म - इरादा , मुन्सिफ़ - इन्साफ़ करने वाला


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यह हमारी एक पुरानी ग़ज़ल है। इस ग़ज़ल के साथ कुछ दूसरी तफ़्सीलात भी हैं, जिन्हें आप हमारी निम्न पोस्ट पर देख सकते हैं-

Thursday, February 28, 2013

"हमीं पर वार करते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरी एक पुरानी ग़ज़ल

हमारा ही नमक खाते, हमीं पर वार करते हैं।
जहर मॆं बुझाकर खंजर, जिगर के पार करते हैं।।

शराफत ये हमारी है, कि हम बर्दाश्त करते हैं,
नहीं वो समझते हैं ये, उन्हें हम प्यार करते हैं।

हमारी आग में तपकर, कभी पिघलेंगे पत्थर भी,
पहाड़ों के शहर में हम, चमन गुलज़ार करते हैं।

कहीं हैं बर्फ के जंगल, कहीं ज्वालामुखी भी हैं,
कभी रंज-ओ-अलम का हम, नहीं इज़हार करते हैं।

अकीदा है, छिपा होगा कोई भगवान पत्थर में,
इसी उम्मीद में हम, रोज ही बेगार करते हैं।

नहीं है रूप से मतलब, नहीं है रंग की चिन्ता,
तराशा है जिसे रब ने, उसे स्वीकार करते हैं।

Wednesday, February 27, 2013

"बदल जाते तो अच्छा था" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')



समय के साथ में हम भी, बदल जाते तो अच्छा था।
घनी ज़ुल्फों के साये में, ग़ज़ल गाते तो अच्छा था।

सदाएँ दे रहे थे वो, अदाओं से लुभाते थे,
चटकती शोख़ कलियों पर, मचल जाते तो अच्छा था।

पुरातनपंथिया अपनी, बनी थीं राह का रोड़ा,
नये से रास्तों पर हम, निकल जाते तो अच्छा था।

मगर बन गोश्त का हलवा, हमें खाना नहीं आया,
सलीके से गरीबों को, निगल जाते तो अच्छा था।

मिली सौहबत पहाड़ों की, हमारा दिल हुआ पत्थर,
तपिश से प्रीत की हम भी, पिघल जाते तो अच्छा था।

जमा था रूप का पानी, हमारे घर के आँगन में,
सुहाने घाट पर हम भी, फिसल जाते तो अच्छा था।

Sunday, February 24, 2013

अकलमंद ऐसे दुनिया में तबाही करते हैं .

 Expressive criminal -Funny Male Business Criminal Laughing -

तबस्सुम चेहरे पर लाकर हलाक़ करते हैं ,
अकलमंद ऐसे दुनिया में तबाही करते हैं .


बरकंदाज़ी करते ये फरीकबंदी की ,
इबादत गैरों की अपनों से फरक करते हैं .


फ़रेफ्ता अपना ही होना फलसफा इनके जीवन का ,
फर्जी फरजानगी की शख्सियत ये रखते हैं .


मुनहसिर जिस सियासत के मुश्तरक उसमे सब हो लें ,
यूँ ही मौके-बेमौके फसाद करते हैं .


समझते खुद को फरज़ाना मुकाबिल हैं न ये उनके,
जो अँधेरे में भी भेदों पे नज़र रखते हैं .


तखैयुल पहले करते हैं शिकार करते बाद में ,
गुप्तचर मुजरिम को कुछ यूँ तलाश करते हैं .

हुआ जो सावन में अँधा दिखे है सब हरा उसको ,
ऐसे रोगी जहाँ में क्यूं यूँ खुले फिरते हैं .


 रश्क अपनों से रखते ये वफ़ादारी करें उनकी ,
मिटाने को जो मानवता उडान भरते हैं .

हकीकत कहने से पीछे कभी न हटती ''शालिनी''
मौजूं  हालात आकर उसमे ये दम भरते हैं .


शब्दार्थ-तखैयुल -कल्पना ,फसाद-लड़ाई-झगडा ,फरज़ाना -बुद्धिमान ,मुनहसिर-आश्रित ,बरकंदाज़ी -चौकीदारी ,रश्क-जलन ,फरक-भेदभाव .

शालिनी कौशिक
       [कौशल ]

सरकार चल रही है जुगाड़ से


जुगाड़ सिस्टम

एक अमेरिकी निकला, भारत के सफ़र पर
पर भीड़ भाड़ के कारण , न मिला होटल में अवसर
न जाने कितने होटलों के लगा चुका था, चक्कर
पर हर जगह उसे निराश मिली, हाउसफुल पढ़कर
एक आदमी मिला, बोला मिल जायेगा रूम, तुम्हे जुगाड़ पर
बस इसके लिए तुम्हे खर्च करने होंगे , कुछ और डालर
व्हाट इज़ जुगाड़ ? इससे कैसे मिलेगा रूम
दिस इज इंडियन सिस्टम, बस तू ख़ुशी से झूम
इस तरह आदमी ने अमेरिकी को दिलाई राहत
पर वो हैरान देख के जुगाड़ की जगमगाहट
उस आदमी ने अमेरिकी को जुगाड़ से दिलाया वापिसी टिकट
पर इस जुगाड़ सिस्टम से था , एक प्रश्न विकट
पहुचते ही अमेरिका, उसने प्रेसिडेंट से संपर्क साधा
इंडिया से जल्द मांगो जुगाड़ सिस्टम, जो दूर करे हर बाधा
अमेरिकी प्रेसिडेंट ने फ़ोन लगाया, तुरत इंडियन प्राइम मिनिस्टर को
बोले क्या है ये जुगाड़ सिस्टम, जो दीवाना बनाये इस मिस्टर को
जल्द से जल्द आप हमें ये जुगाड़ सिस्टम एक्सपोर्ट कीजिये
सॉरी हम मजबूर हैं, इस बार हमें बख्श दीजिये
पहली बार हमें आपको मनाही करनी पड़ रही है
बस इसी सिस्टम से ही तो, हमारी सरकार चल रही है

जुगाड़ सिस्टम 

एक अमेरिकी निकला, भारत के सफ़र पर
पर भीड़ भाड़ के कारण , न मिला होटल में अवसर
न जाने कितने होटलों के लगा चुका था, चक्कर
पर हर जगह उसे निराश मिली, हाउसफुल पढ़कर
एक आदमी मिला, बोला मिल जायेगा रूम, तुम्हे जुगाड़ पर
बस इसके लिए तुम्हे खर्च करने होंगे , कुछ और डालर
व्हाट इज जुगाड़ ? इससे कैसे मिलेगा रूम
दिस इज इंडियन सिस्टम, बस तू ख़ुशी से झूम
इस तरह आदमी ने अमेरिकी को दिलाई राहत
पर वो हैरान देख के जुगाड़ की जगमगाहट
उस आदमी ने अमेरिकी को जुगाड़ से दिलाया वापिसी टिकट
पर इस जुगाड़ सिस्टम से था , एक प्रश्न विकट
पहुचते ही अमेरिका, उसने प्रेसिडेंट से संपर्क साधा
इंडिया से जल्द मांगो जुगाड़ सिस्टम, जो दूर करे हर बाधा
अमेरिकी प्रेसिडेंट ने फोम लगाया, तुरत इंडियन प्राइम मिनिस्टर को
बोले क्या है ये जुगाड़ सिस्टम, जो दीवाना बनाये इस मिस्टर को
जल्द से जल्द आप हमें ये जुगाड़ सिस्टम एक्सपोर्ट कीजिये
सॉरी हम मजबूर है, इस बार हमें बक्श दीजिये
पहली बार हमें आपको मनाही करनी पड़ रही है
बस इसी सिस्टम से ही तो, हमारी सरकार चल रही है

Saturday, February 23, 2013

इस बार भी बस ग़रीब ही पिसेगा


इस बार भी बस ग़रीब ही पिसेगा !
उसी का ख़ून पानी है वही बहेगा !!

Friday, February 22, 2013

कलेजे में वतन का इश्क भर दे .


 Kashmiri : SRINAGAR, INDIA - JULY 11, 2009: A taxi boatman paddles through the sellers of the floating market, a major tourist attraction on Dal Lake on July 11, 2009 in Srinagar, IndiaKashmiri : SRINAGAR, INDIA - JULY 11, 2009: A Kashmiri man rows by the remainder of the morning floating market on Dal Lake, a major tourist attraction, in Kashmir on July 11, 2009 in Srinagar, India

या खुदा नादानी इनकी दूर कर दे ,
शहादत-ए-बारीकी से दो -चार कर दे .

शहीद कहते हैं किसको नहीं इनको खबर है ,
वही जो मुल्क की खातिर ये जां कुर्बान कर दे .

शहादत देना क्या जाने ऐसा फरेबी ,
परवरिश करने वाले का ही देखो क़त्ल कर दे .

खुदा की राह में बलिदान पाता वह कदर है ,
फ़ना खुद को जो खातिर दूसरों की कर दे .


न केवल नाम से अफज़ल बनो कश्मीर वालों ,
दिखाओ हिन्द के बनकर ,जो इसमें असर दे .

खुदा का शुक्र मनाओ मिले तुम हिन्द में आकर ,
होगे नाशाद तुम्हीं गर ये तुम्हे बाहर ही कर दे .

दुआ मांगूं खुदा से लाये इनको रास्ते पर ,
सही आज़ादी की इनमे थोड़ी अक्ल भर दे .


हुकूमत कर रहा मज़हब इनके दिलों पर ,
कलेजे में वतन का इश्क भर दे .

जियें ये देश की खातिर मरें ये मुल्क पर अपने ,
धडकनें रूहों में इनकी इसी कुदरत की भर दे .

सफल समझेगी ''शालिनी''सभी प्रयास ये अपने ,
वतन से प्रेम की शमां अगर रोशन वो कर दे .


शब्दार्थ -बारीकी-सूक्ष्मता ,अफज़ल-श्रेष्ठ ,नाशाद-बदनसीब ,

      शालिनी कौशिक
                [कौशल ]



Wednesday, February 6, 2013

"प्यार से बोला करो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


तुम कभी तो प्यार से बोला करो।
राज़ दिल के तो कभी खोला करो।।

हम तुम्हारे वास्ते घर आये हैं,
मत तराजू में हमें तोला करो।

ज़र नहीं है पास अपने तो जिगर है,
चाशनी में ज़हर मत घोला करो।

डोर नाज़ुक है उड़ो मत फ़लक में,
पेण्डुलम की तरह मत डोला करो।

राख में सोई हैं कुछ चिंगारियाँ,
मत हवा देकर इन्हें शोला करो।

आँख से देखो-सराहो दूर से,
रूप को छूकर नहीं मैला करो।

Friday, January 25, 2013

फहराऊं बुलंदी पे ये ख्वाहिश नहीं रही .


फ़िरदौस इस वतन में फ़रहत नहीं रही ,
पुरवाई मुहब्बत की यहाँ अब नहीं रही .

Flag Foundation Of IndiaFlag Foundation Of India

नारी का जिस्म रौंद रहे जानवर बनकर ,
हैवानियत में कोई कमी अब नहीं रही .


 फरियाद करे औरत जीने दो मुझे भी ,
इलहाम रुनुमाई को हासिल नहीं रही .



अंग्रेज गए बाँट इन्हें जात-धरम में ,
इनमे भी अब मज़हबी मिल्लत नहीं रही .


 फरेब ओढ़ बैठा नाजिम ही इस ज़मीं पर ,
फुलवारी भी इतबार के काबिल नहीं रही .


 लाये थे इन्कलाब कर गणतंत्र यहाँ पर ,
हाथों में जनता के कभी सत्ता नहीं रही .


  वोटों में बैठे आंक रहे आदमी को वे ,
खुदगर्जी में कुछ करने की हिम्मत नहीं रही .


  इल्ज़ाम लगाते रहे ये हुक्मरान पर ,
अवाम अपने फ़र्ज़ की खाहाँ नहीं रही .  


फसाद को उकसा रहे हैं रहनुमा यहाँ ,
ये थामे मेरी डोर अब हसरत नहीं रही .


 खुशहाली ,प्यार,अमन बांटा फहर-फहर कर ,
भारत की नस्लों को ये ज़रुरत नहीं रही . 



गणतंत्र फ़साना बना हे ! हिन्दवासियों ,
जलसे से जुदा हाकिमी कीमत नहीं रही .

 
तिरंगा कहे ''शालिनी'' से फफक-फफक कर ,
फहराऊं बुलंदी पे ये ख्वाहिश नहीं रही .

 

शब्द अर्थ -फ़िरदौस-स्वर्ग ,पुरवाई-पूरब की ओर से आने वाली हवा ,इलहाम -देववाणी ,ईश्वरीय प्रेरणा ,रुनुमाई-मुहं दिखाई ,इन्कलाब -क्रांति ,खाहाँ -चाहने वाला ,मिल्लत-मेलजोल ,हाकिमी -शासन सम्बन्धी ,फ़साना -कल्पित साहित्यिक रचना ,इतबार-विश्वास ,नाजिम-प्रबंधकर्ता ,मंत्री ,फुलवारी-बाल बच्चे ,
        शालिनी कौशिक
            [कौशल]









Tuesday, January 22, 2013

तू है सबसे जुदा तू है सबसे बड़ा / अल-मदद अल-मदद या ख़ुदा या ख़ुदा

मुश्किलों में सदा  है मुश्किल कुशा
अल-मदद अल-मदद या ख़ुदा  या ख़ुदा

हुक्मरानी तेरी हर जगह हर घड़ी
कोई शै कोई हस्ती न तुझ से बड़ी

तू है सबसे जुदा तू है सबसे बड़ा
अल-मदद अल-मदद या ख़ुदा  या ख़ुदा

(फेसबुक से साभार)

Monday, January 21, 2013

अल्लाह दुआ हम सबकी है बस एक करकरे पैदा कर


आज गृह मंत्री शिंदे साहब के बयान शहीद करकरे साहिब की याद आ गयी! इमरान प्रतापगढ़ी साहिब की मशहूर नज़्म गौर करे :-

मज़हब की ठेकेदारी से ,नफरत की पैरोकारी से ,
जो दूर रहें मज़हब और धर्मों की हर रिश्तेदारी से ,
"कामते साहब" "सालसकर" से कुछ नए सरफिरे पैदा कर ,
अल्लाह दुआ हम सबकी है एक और "करकरे" पैदा कर ,
जो समझ सके कि दहशत का एक और चेहरा होता है ,
अफ़सोस मगर एक "ख़ास कौम" के सर पर सेहरा होता है ,
जिसकी खातिर दहशतगर्दी का मतलब दहशतगर्दी हो ,
जिसे किसी न जात न किसी कौम से कोई भी हमदर्दी हो ,
नफरत की परिभाषा बदले ,कुछ नए दायरे पैदा कर ,
अल्लाह दुआ हम सबकी है एक और करकरे .................
जिसकी क़ुरबानी भारत में हम सदियों सदियों याद करे ,
जिसकी इंसाफ परस्ती को हम गलियों गलियों याद करे ,
मौला हम सब होंठो पर मासूम दुआएं बची रहे ,
कविता (करकरे ) जैसी हिंदुस्तान में लाखों माएं बची रहें ,
मोदी ,कसाब ,न तोगड़िया ,न कोई ठाकरे पैदा कर ,
अल्लाह दुआ हम सबकी है बस एक करकरे पैदा कर !

हिंदुस्तान जिंदाबाद !

Monday, January 7, 2013

राम के भक्त कहाँ, बन्दा-ए- रहमान कहाँ

फेसबुक से साभार -






राम के भक्त कहाँ, बन्दा-ए- रहमान कहाँ
तू भी हिंदू है कहाँ, मैं भी मुसलमान कहाँ

तेरे हाथों में भी त्रिशूल है गीता की जगह
मेरे हाथों में भी तलवार है कुरआन कहाँ

तू मुझे दोष दे, मैं तुझ पे लगाऊँ इलज़ाम
ऐसे आलम में भला अम्न का इम्कान कहाँ


आज तो मन्दिरो मस्जिद में लहू बहता है
पानीपत और पलासी के वो मैदान कहाँ


कर्फ्यू शहर में आसानी से लग सकता है
सर छुपा लेने को फुटपाथ पे इंसान कहाँ


किसी मस्जिद का है गुम्बद, के कलश मन्दिर का
इक थके-हारे परिंदे को ये पहचान कहाँ


पहले इस मुल्क के बच्चों को खिलाओ खाना
फिर बताना उन्हें पैदा हुए भगवान कहाँ