ग़ज़ल
दायरा दर दायरा बस दर्द है
दश्ते दिल है बेबसी की गर्द है
आग इक सुलगी हुई है कर्ब की
सांस लेती हूं तो आहे सर्द है
नख्ले जां को ख़ूं पिलाया उम्र भर
शाख़े हस्ती आज भी जाने क्यूं ज़र्द है
खोजने निकली मैं अपने आप को
मैंने देखा लापता हर फ़र्द है
किस तरह ‘आशी‘ सुकूं मिलता मुझे
सोच का हर पहर ही बेदर्द है
शब्दार्थः
दश्ते दिल - दिल का जंगल, गर्द-धूल,
कर्ब-कष्ट, नख्ले जां-वुजूद का बाग़,
ज़र्द-पीला, फ़र्द-व्यक्ति, सुकूं अर्थात सुकून-शांति
दायरा दर दायरा बस दर्द है
दश्ते दिल है बेबसी की गर्द है
आग इक सुलगी हुई है कर्ब की
सांस लेती हूं तो आहे सर्द है
नख्ले जां को ख़ूं पिलाया उम्र भर
शाख़े हस्ती आज भी जाने क्यूं ज़र्द है
खोजने निकली मैं अपने आप को
मैंने देखा लापता हर फ़र्द है
किस तरह ‘आशी‘ सुकूं मिलता मुझे
सोच का हर पहर ही बेदर्द है
शब्दार्थः
दश्ते दिल - दिल का जंगल, गर्द-धूल,
कर्ब-कष्ट, नख्ले जां-वुजूद का बाग़,
ज़र्द-पीला, फ़र्द-व्यक्ति, सुकूं अर्थात सुकून-शांति