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मुशायरा::: नॉन-स्टॉप

Saturday, June 2, 2012

दिल तो है लँगूर का


रोटियों को बीनने को, आ गये फकीर हैं। 
अमन-चैन छीनने को, आ गये हकीर हैं।।

तिजारतों के वास्ते, बना रहे हैं रास्ते,
हरी घास छीलने को, आ गये अमीर हैं।

दे रहे हैं मुफ्त में, सुझाव भी-सलाह भी,
बादशाह लीलने को, आ गये वज़ीर हैं।

ज़िन्दगी के हाट में, बेचते हैं मौत को,
धीरता को जीमने को, आ गये अधीर हैं।

“रूप” बन्दरों सा है, दिल तो है लँगूर का,
मनुजना को पीसने को, आ गये कदीर हैं।

9 comments:

मनोज कुमार said...

शास्त्री जी की लेखनी में जादू है, और यह जादू सर चढ़कर बोलता है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

Anjani Kumar said...

ज़िन्दगी के हाट में, बेचते हैं मौत को,
धीरता को जीमने को, आ गये अधीर हैं।
सुन्दर अवलोकन सर

मनोज कुमार said...

एक एक शे’र में आज के समाज और देश की वास्तविक स्थिति का बयान हुआ है। लाजवाब!

DR. ANWER JAMAL said...

lajawaab sher ,
behatrin nasihat.

Dr.NISHA MAHARANA said...

“रूप” बन्दरों सा है, दिल तो है लँगूर का,
मनुजना को पीसने को, आ गये कदीर हैं। bahut khoob....

Noopur said...

bohot khub....sundar rachna....

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह!!!!!!!!!!!!

बहुत बढ़िया................

अनु

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बढिया
बहुत सुंदर