रोटियों को बीनने को, आ गये फकीर हैं।
अमन-चैन छीनने को, आ गये हकीर हैं।।तिजारतों के वास्ते, बना रहे हैं रास्ते,
हरी घास छीलने को, आ गये अमीर हैं।
दे रहे हैं मुफ्त में, सुझाव भी-सलाह भी,
बादशाह लीलने को, आ गये वज़ीर हैं।
ज़िन्दगी के हाट में, बेचते हैं मौत को,
धीरता को जीमने को, आ गये अधीर हैं।
“रूप” बन्दरों सा है, दिल तो है लँगूर का,
मनुजना को पीसने को, आ गये कदीर हैं।
9 comments:
शास्त्री जी की लेखनी में जादू है, और यह जादू सर चढ़कर बोलता है।
प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
ज़िन्दगी के हाट में, बेचते हैं मौत को,
धीरता को जीमने को, आ गये अधीर हैं।
सुन्दर अवलोकन सर
एक एक शे’र में आज के समाज और देश की वास्तविक स्थिति का बयान हुआ है। लाजवाब!
lajawaab sher ,
behatrin nasihat.
“रूप” बन्दरों सा है, दिल तो है लँगूर का,
मनुजना को पीसने को, आ गये कदीर हैं। bahut khoob....
bohot khub....sundar rachna....
वाह!!!!!!!!!!!!
बहुत बढ़िया................
अनु
बढिया
बहुत सुंदर
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