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मुशायरा::: नॉन-स्टॉप

Thursday, June 28, 2012

विदेशी गान गाया है

जलाया खून है अपना, पसीना भी बहाया है।
कृषक ने अन्न खेतों में, परिश्रम से कमाया है।।

सुलगते जिसके दम से हैं, घरों में शान से चूल्हे,
उसी पालक को, साहूकार ने भिक्षुक बनाया है।

मुखौटा पहनकर बैठे हैं, ढोंगी आज आसन पर,
जिन्होंने कंकरीटों का, यहाँ जंगल उगाया है।

कहें अब दास्तां किससे, अमानत में ख़यानत है,
जमाखोरों का अब अपने, वतन में राज आया है।

पहन खादी की केंचुलिया, छिपाया “रूप” को अपने,
रिज़क इस देश का खाकर, विदेशी गान गाया है।

Saturday, June 2, 2012

दिल तो है लँगूर का


रोटियों को बीनने को, आ गये फकीर हैं। 
अमन-चैन छीनने को, आ गये हकीर हैं।।

तिजारतों के वास्ते, बना रहे हैं रास्ते,
हरी घास छीलने को, आ गये अमीर हैं।

दे रहे हैं मुफ्त में, सुझाव भी-सलाह भी,
बादशाह लीलने को, आ गये वज़ीर हैं।

ज़िन्दगी के हाट में, बेचते हैं मौत को,
धीरता को जीमने को, आ गये अधीर हैं।

“रूप” बन्दरों सा है, दिल तो है लँगूर का,
मनुजना को पीसने को, आ गये कदीर हैं।