इतने न कर जुल्म माँ बाप पर बन्दे !
जो माँ -बाप का न होता किसी का नहीं होता .
जब टोकता है उनको दो टुकड़ों के लिए ;
मुंह से कहें न कुछ पर दिल तो है रोता .
तूने भरी एक आह वे जागे रात भर
वे तडपे दर्द से तू आराम से सोता ?
जिसने करी दुआ तू रहे सलामत ;
उनकी ही मौत की तू राह है जोहता .
इतने न कर जुल्म माँ बाप पर बन्दे ;
वे सोचने लगे कि बेऔलाद ही होता .
शिखा कौशिक
'' vikhyat ''