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मुशायरा::: नॉन-स्टॉप

Monday, April 16, 2012

तिजारत ही तिजारत है


जमाना है तिजारत का, तिजारत ही तिजारत है
तिजारत में सियासत है, सियासत में तिजारत है

ज़माना अब नहीं, ईमानदारी का सचाई का
खनक को देखते ही, हो गया ईमान ग़ारत है

हुनर बाज़ार में बिकता, इल्म की बोलियाँ लगतीं
वजीरों का वतन है ये, दलालों का ही भारत है

प्रजा के तन्त्र में कोई, नहीं सुनता प्रजा की है
दिखाने को लिखी मोटे हरफ में बस इबारत है

हवा का एक झोंका ही धराशायी बना देगा
खड़ी है खोखली बुनियाद पर ऊँची इमारत है

लगा है घुन नशेमन में, फक़त अब “रूप” है बाकी
लगी अन्धों की महफिल है, औ’ कानों की सदारत है

Tuesday, April 10, 2012

एक प्यारा सा शेर

डा. ताबिश महदी के एज़ाज़ में  ग़ालिब एकेडमी दिल्ली में ४ अप्रैल को एक मुशायरा संपन्न हुआ . वहां यह शेर कहा गया.
तुम से मिल कर सबसे नाते तोड़ लिए थे
हमने बादल देख के मटके फोड़ लिए थे
-मुईन शादाब

Monday, April 9, 2012

श्रीमान जरदारी -तब होगी मुलाकात !

श्रीमान जरदारी -तब होगी मुलाकात !
Zardari — private visit, political agenda: Pics



जो भेजते हैं कातिल हमारी ज़मीन पर ;
आये थे बन जियारती हमारी ज़मीन पर .

रचते हैं साजिशें अपनी ज़मीन पर ;
हम दे रहे जियाफ़त1 उन्हें हमारी जमीन पर .


तू तो हमारे कातिलों को दे रहा पनाह ;
हम हाथ मिलाते हैं हमारी ज़मीन पर !



कैसे करें क़ुबूल ख्वाज़ा तेरी दुआ ?
तूने बहाया खून हमारी ज़मीन पर .


फैलसूफ2 फैयाज़3 बना ख्वाज़ा की मज़ार पर ,
करता है क्यों मसखरी हमारी ज़मीन पर .


महकूम4 हिन्दुस्तान की जानती है सब ;
क्यों करता तमाशा हमारी ज़मीन पर .


तू घुटा मुरशिद5 करे दोस्ती की बात ,
मुल्ज़िम तो कर हवाले हमारी ज़मीन पर .


माकूल है चेहरे से मखौटे को हटा दे ;
फिर होगी मुलाकात हमारी ज़मीन पर .


शिखा कौशिक


[1-दावत ,२-dhoort ;3-दानी ;४-janta ;5-mahadhoort ]

Thursday, April 5, 2012

आदम-मनु हैं एक, बाप अपना भी कह ले -रविकर फैजाबादी

रविकर फैजाबादी has left a new comment on your post "मां बाप का आदर करना सीखिए Manu means Adam":

पुरखों के सम्मान से, जुडी हुई हर चीज ।

अति-पावन है पूज्य है, मानवता का बीज ।

मानवता का बीज, उड़ाना हँसी ना पगले ।

करे अगर यह कर्म, हँसेंगे मानव अगले ।

पढो लिखो इतिहास, पाँच शतकों के पहले ।

आदम-मनु हैं एक, बाप अपना भी कह ले ।।

Sunday, April 1, 2012

मां बाप हैं अल्लाह की बख्शी हुई नेमत

मां बाप हैं अल्लाह की बख्शी हुई नेमत
मिल जाएं जो पीरी में तो मिल सकती है जन्नत

लाज़िम है ये हम पर कि करें उन की इताअत
जो हुक्म दें हम को वो बजा लाएं उसी वक्त

हम को वो कभी डांट दें हम सर को झुका लें
नज़रें हों झुकी और चेहरे पे नदामत

खि़दमत में कमी उन की कभी होने न पाए
है दोनों जहां में यही मिफ़्ताहे सआदत

भूले से भी दिल उन का कभी दुखने न पाए
दिल उन का दुखाया तो समझ लो कि है आफ़त

मां बाप को रखोगे हमा वक्त अगर ख़ुश
अल्लाह भी ख़ुश होगा, संवर जाएगी क़िस्मत

फ़ज़्लुर्रहमान महमूद शैख़
जामिया इस्लामिया सनाबल, नई दिल्ली

शब्दार्थः
पीरी-बुढ़ापा, नदामत-शर्मिंदगी, इताअत-आज्ञापालन, खि़दमत-सेवा,
मिफ़्ताहे सआदत-कल्याण की कुंजी, हमा वक्त-हर समय

राष्ट्रीय सहारा उर्दू दिनांक 1 अप्रैल 2012 उमंग पृ. 3

Source : http://pyarimaan.blogspot.in/2012/04/blog-post.html