स्वर सँवरता नहीं, आचमन के बिना।
पग ठहरता नहीं, आगमन के बिना।।
देश-दुनिया की चिन्ता, किसी को नहीं,
मन सुधरता नहीं, अंजुमन के बिना।
मोह माया तो, दुनिया का दस्तूर है,
सुख पसरता नहीं, संगमन के बिना।
खोखली देह में, प्राण कैसे पले,
बल निखरता नहीं, संयमन के बिना।
क्या करेगा यहाँ, अब अकेला चना,
दल उभरता नहीं, संगठन के बिना।
“रूप” कैसे खिले, धूप कैसे मिले?
रवि ठहरता नहीं है, गगन के बिना।
11 comments:
वाह ………बहुत सुन्दर गज़ल
रूप कैसे खिले ...........
रवि ठहरता नहीं गगन के बिना ..
उत्साह के भावों में पगी अभिव्यक्ति|
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-743:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
Nice .
बहार हो कि खिज़ां मुस्कुराए जाते हैं,
हयात हम तेरा एहसाँ उठाए जाते हैं |
सुलगती रेत हो बारिश हो या हवाएं हों,
ये बच्चे फिर भ़ी घरौंदे बनाए जाते हैं |
ये एहतमाम मुहब्बत है या कोई साज़िश,
जो फूल राहों में मेरी बिछाए जाते हैं |
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/12/blog-post_28.html
क्या करेगा यहाँ, अब अकेला चना,
दल उभरता नहीं, संगठन के बिना।
सुन्दर प्रस्तुति .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
टिप्स हिंदी में
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
मेरा शौक
मेरे पोस्ट में आपका इंतजार है,नई रोशनी में सारा जग जगमगा गया |
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
* नया साल मुबारक हो आप सभी को *
खोखली देह में, प्राण कैसे पले,
बल निखरता नहीं, संयमन के बिना।
jeevan mein sanyam aa jaye to bahut kuchh theek ho sakta hai...
har pankti hi kuchh sandesh deti hai...
sundar...
सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
नूतन वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ मेरे ब्लॉग "meri kavitayen " पर आप सस्नेह/ सादर आमंत्रित हैं.
"टिप्स हिंदी" में ब्लॉग की तरफ से आपको नए साल के आगमन पर शुभ कामनाएं |
टिप्स हिंदी में
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