बात-बात में हो जाती हैं, देखो कितनी सारी बातें।
घर-परिवार, देश-दुनिया की, होतीं सबसे न्यारी बातें।।
रातों में देखे सपनों की, दिन भर की दिनचर्या की भी,
सुबह-शाम उपवन में जाकर, होतीं प्यारी-प्यारी बातें।
बातों का नहीं ठौर-ठिकाना, बातों से रंगीन जमाना,
गली-गाँव चौराहे करते, मेरी और तुम्हारी बातें।
बातें ही तो मीत बनातीं, बातें बैर-भाव फैलातीं,
बातों से नहीं मन भरता है, सुख-दुख की संचारी बातें।
जाल-जगत के ढंग निराले, हैं उन्मुक्त यहाँ मतवाले,
ज्यादातर करते रहते हैं, गन्दी भ्रष्टाचारी बातें।
लेकिन कोश नहीं है खाली, सुरभित इसमें है हरियाली,
सींच रहा साहित्य सरोवर, उपजाता गुणकारी बातें।
खोल सको तो खोलो गठरी, जिसमें बँधी ज्ञान की खिचड़ी,
सभी विधाएँ यहाँ मिलेंगी, होंगी विस्मयकारी बातें।
नहीं “रूप” है, नहीं रंग है, फिर भी बातों की उमंग है,
कभी-कभी हैं हलकी-फुलकी, कभी-कभी हैं भारी बातें।
15 comments:
खोल सको तो खोलो गठरी, जिसमें बँधी ज्ञान की खिचड़ी,
सभी विधाएँ यहाँ मिलेंगी, होंगी विस्मयकारी बातें।
Waah ...
Sahi kaha aapne ...
अरे वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति
वाह …………बहुत सुन्दर रचना।
वाह!!! बहुत बहुत बधाई ||
प्रभावी कविता ||
सुन्दर प्रस्तुति ||
bahut hi sundae aur prabhavit karti racna
वाह क्या बात है ..सुंदर लेखन का मुजाहिरा उस्ताद जी की कलम से ...मुबारकबाद !
सुंदर रचना बेहद खूबसूरत !
अपने चर्चा मंच पर, कुछ लिंकों की धूम।
अपने चिट्ठे के लिए, उपवन में लो घूम।।
सुन्दर प्रस्तुति !
सुन्दर प्रस्तुति !
बातें ही तो मीत बनातीं, बातें बैर-भाव फैलातीं,
बातों से नहीं मन भरता है, सुख-दुख की संचारी बातें।sachchi baten.
बातें ही तो मीत बनातीं, बातें बैर-भाव फैलातीं,
बातों से नहीं मन भरता है, सुख-दुख की संचारी बातें।
खोल सको तो खोलो गठरी, जिसमें बँधी ज्ञान की खिचड़ी,
सभी विधाएँ यहाँ मिलेंगी, होंगी विस्मयकारी बातें।
बहुत खूब। बधाई
वाह! बहुत ही उम्दा रचना ...बधाई स्वीकारें ...इतफाक से आज ही मैं ने भी एक इस ही तरह की कविता लिखी कुछ पंक्तियाँ पेश करती हूँ .......
बात गर हम शुरू कर भी दें तो , दुनिया, जहाँ की बातें करते है
कौन कैसा है ,वो तो वैसा है, जाने कहाँ कहाँ की बातें करते है
अपनी बातों की बात छोड़ कर हम , धरती आसमाँ की बातें करते है
जो जरूरी है वो तो रह ही जाता है ,और हम यहाँ वहां की बातें करते है.....
waah bahut khub
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