बात-बात में हो जाती हैं, देखो कितनी सारी बातें।
घर-परिवार, देश-दुनिया की, होतीं सबसे न्यारी बातें।।
रातों में देखे सपनों की, दिन भर की दिनचर्या की भी,
सुबह-शाम उपवन में जाकर, होतीं प्यारी-प्यारी बातें।
बातों का नहीं ठौर-ठिकाना, बातों से रंगीन जमाना,
गली-गाँव चौराहे करते, मेरी और तुम्हारी बातें।
बातें ही तो मीत बनातीं, बातें बैर-भाव फैलातीं,
बातों से नहीं मन भरता है, सुख-दुख की संचारी बातें।
जाल-जगत के ढंग निराले, हैं उन्मुक्त यहाँ मतवाले,
ज्यादातर करते रहते हैं, गन्दी भ्रष्टाचारी बातें।
लेकिन कोश नहीं है खाली, सुरभित इसमें है हरियाली,
सींच रहा साहित्य सरोवर, उपजाता गुणकारी बातें।
खोल सको तो खोलो गठरी, जिसमें बँधी ज्ञान की खिचड़ी,
सभी विधाएँ यहाँ मिलेंगी, होंगी विस्मयकारी बातें।
नहीं “रूप” है, नहीं रंग है, फिर भी बातों की उमंग है,
कभी-कभी हैं हलकी-फुलकी, कभी-कभी हैं भारी बातें।