(एक षट्पदी अगीत )
दुश्मन को पद-दलित धूलि को,
अग्नि,पाप, ईश्वर व सर्प को;
कभी न छोटा करके समझें |
इनके बल, गुण, कर्म भाव का,
नहीं कभी भी अहंकार वश;
करें उपेक्षा, असावधानी ||
दुश्मन को पद-दलित धूलि को,
अग्नि,पाप, ईश्वर व सर्प को;
कभी न छोटा करके समझें |
इनके बल, गुण, कर्म भाव का,
नहीं कभी भी अहंकार वश;
करें उपेक्षा, असावधानी ||
7 comments:
bhaut hi sundar....
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
आपको हमारी ओर से
सादर बधाई ||
gagar me sagar bhar diya aapne...badhiya
बेहतरीन......
धन्यवाद सागर, रविकर अनाजी व सुषमा जी.....
सारगर्भित..सही कहा
धन्यवाद अरुण जी.....
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