गिर रहा है तो किसी और तरह ख़ुद को संभाल
हाथ यूं भी तो न फैले कि बने दस्ते सवाल
घर बनाना भी तो असीरी ही कहलाएगा
ख़ुद को आज़ाद समझता है तो ये रोग न पाल
मह-जबीनों ने किसी काम का छोड़ा न हमें
चांद चढ़ता है तो बन जाता है ही का जंजाल
तख्ता ए दार ही बन जाएंगे तेरे शबो-रोज़
दिल की बातों को कभी अक्ल के सांचे में न ढाल
रूह को जिस्म के वीराने में गुम रहने दे
जी बहलने के लिए कम तो नहीं हैं ख़द्दो-ख़ाल
इसी सिनो-साल पे नाज़ां हो मगर सोचो तो
वक्त के पांव की ज़ंजीर नहीं हैं मह-व-साल
तुम समझते हो कि है तख्ता ए गिल मेरा जहां
वो घुटन है कि मुझे सांस भी लेना है मुहाल
शब्दार्थ
हाथ यूं भी तो न फैले कि बने दस्ते सवाल
घर बनाना भी तो असीरी ही कहलाएगा
ख़ुद को आज़ाद समझता है तो ये रोग न पाल
मह-जबीनों ने किसी काम का छोड़ा न हमें
चांद चढ़ता है तो बन जाता है ही का जंजाल
तख्ता ए दार ही बन जाएंगे तेरे शबो-रोज़
दिल की बातों को कभी अक्ल के सांचे में न ढाल
रूह को जिस्म के वीराने में गुम रहने दे
जी बहलने के लिए कम तो नहीं हैं ख़द्दो-ख़ाल
इसी सिनो-साल पे नाज़ां हो मगर सोचो तो
वक्त के पांव की ज़ंजीर नहीं हैं मह-व-साल
तुम समझते हो कि है तख्ता ए गिल मेरा जहां
वो घुटन है कि मुझे सांस भी लेना है मुहाल
शब्दार्थ
दस्ते सवाल-याचना के लिए फैला हुआ हाथ, असीरी-क़ैद,
मह जबीन-चांद जैसे दमकते माथे वाली सुंदरी,
तख्ता ए दार-मुजरिम को फांसी के समय जिस तख्ते पर खड़ा किया जाता है
शबो रोजत्ऱ-रात दिन, ख़द्दो ख़ाल-रूपाकृति, सिनो साल-यहां आयु अभिप्रेत है
नाज़ां-गर्वोन्मत्त, मह व साल-माह और साल
तख्ता ए गिल-रज पट्ट अर्थात यह भौतिक संसार, मुहाल-मुश्किल
मह जबीन-चांद जैसे दमकते माथे वाली सुंदरी,
तख्ता ए दार-मुजरिम को फांसी के समय जिस तख्ते पर खड़ा किया जाता है
शबो रोजत्ऱ-रात दिन, ख़द्दो ख़ाल-रूपाकृति, सिनो साल-यहां आयु अभिप्रेत है
नाज़ां-गर्वोन्मत्त, मह व साल-माह और साल
तख्ता ए गिल-रज पट्ट अर्थात यह भौतिक संसार, मुहाल-मुश्किल