शेर मतले का न हो तो कुंवारी ग़ज़ल होती है |
हो काफिया भी जो नहीं बेचारी ग़ज़ल होती है |
और भी मतले हों, हुश्ने तारी ग़ज़ल होती है ,
हर शेर मतला हो, हुश्ने हजारी ग़ज़ल होती है |
हो रदीफ़ काफिया नहीं, नाकारी ग़ज़ल होती है ,
मकता बगैर हो ग़ज़ल वो मारी ग़ज़ल होती है |
मतला भी मकता भी रदीफ़ काफिया भी हो,
सोच समझ के लिख के सुधारी ग़ज़ल होती है |
हो बहर में सुर ताल लय में, प्यारी ग़ज़ल होती है,
सब कुछ हो कायदे में वो संवारी ग़ज़ल होती है |
हर शेर एक भाव हो वो जारी ग़ज़ल होती है,
हर शेर नया अंदाज़ हो वो भारी ग़ज़ल होती है |
मस्ती में कहदें झूम के गुदाज़कारी ग़ज़ल होती है |
उनसे तो जो कुछ भी कहें वो सारी ग़ज़ल होती है |
जो वार दूर तक करे वो करारी ग़ज़ल होती है,
छलनी हो दिल आशिक का शिकारी ग़ज़ल होती है |
हो दर्दे-दिल की बात दिलदारी ग़ज़ल होती है,
मिलने का करें वायदा मुतदारी ग़ज़ल होती है |
तू गाता चल ऐ यार, कोई कायदा न देख,
कुछ अपना ही अंदाज़ हो खुद्दारी ग़ज़ल होती है |
जो उसकी राह में कहो इकरारी ग़ज़ल होती है ,
अंदाज़े बयाँ हो श्याम' का वो न्यारी ग़ज़ल होती है ||