तुम चली गयीं तो जैसे रौशनी चली गयी
ज़िन्दा होते हुए भी जैसे ज़िन्दगी चली गयी
मैं उदास हूँ यहाँ और ग़मज़दा हो तुम वहाँ
ग़मों की तल्खियों में जैसे हर ख़ुशी चली गयी
महफ़िल भी है जवाँ और जाम भी छलक रहे
प्यास अब रही नहीं जैसे तिशनगी चली गयी
दुश्मनान-ए-इश्क़ भी खुश हैं मुझको देखकर
वो समझते है मुझमें अब दीवानगी चली गयी
तुम जो थी मेरे क़रीब तो क्या न था यहाँ 'सलीम'
इश्क़ की गलियों से अब जैसे आवारगी चली गयी
10 comments:
माशूक़ चाहता है तोहफ़े प्यार के साथ में
तुमने दिए नहीं इसलिए वो चली गई
लूट लेगी जेब वो तेरे रक़ीब की
ख़ुशी की बात है जो घर से चली गई
शराब हराम है इसकी तू बात न कर
इसे पिएगा वो जिसकी अक़्ल चली गई
Nice .
bahut hi badiya
महफ़िल भी है जवाँ और जाम भी छलक रहे
प्यास अब रही नहीं जैसे तिशनगी चली गयी
वाह …………क्या बात कही है सब वक्त की बात होती है वक्त गुजर जाने पर वो दीवानगी कहाँ रहती है।
सुन्दर गज़ल सलीम की क्या कमाल वाह वाह !
क्या टिप्पणी अनवर की क्या जमाल वाह वाह !
बहुत उम्दा ग़ज़ल!
बहुत खुब। शानदार। हर शेर दाद के काबिल।
वाह ! बहुत खूब ,
तुम जो थी मेरे क़रीब तो क्या न था यहाँ 'सलीम'
इश्क़ की गलियों से अब जैसे आवारगी चली गयी
kya kahen saleem ji jaban to jaise shabd dhoondhne chali gayee.
वाह ! बहुत खूब , मुकर्रर इरशाद. सुबहानल्लाह.
Waah Saleem Bhai! Gazab andaaz hai gazal ka... Behtreen!
तुम चली गयीं तो जैसे रौशनी चली गयी
ज़िन्दा होते हुए भी जैसे ज़िन्दगी चली गयी isqe ki virah main doobi dardmai rachanaa.dil ko choo gai aapki najm.badhaai aapko.
please visit my blog and leave a comment also.aabhaar
Post a Comment