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मुशायरा::: नॉन-स्टॉप

Thursday, May 26, 2011

इश्क़ की गलियों से अब जैसे आवारगी चली गयी...Saleem Khan


तुम चली गयीं तो जैसे रौशनी चली गयी
ज़िन्दा होते हुए भी जैसे ज़िन्दगी चली गयी

मैं उदास हूँ यहाँ और ग़मज़दा हो तुम वहाँ
ग़मों की तल्खियों में जैसे हर ख़ुशी चली गयी

महफ़िल भी है जवाँ और जाम भी छलक रहे
प्यास अब रही नहीं जैसे तिशनगी चली गयी

दुश्मनान-ए-इश्क़ भी खुश हैं मुझको देखकर
वो समझते है मुझमें अब दीवानगी चली गयी

तुम जो थी मेरे क़रीब तो क्या न था यहाँ 'सलीम'
इश्क़ की गलियों से अब जैसे आवारगी चली गयी

10 comments:

DR. ANWER JAMAL said...

माशूक़ चाहता है तोहफ़े प्यार के साथ में
तुमने दिए नहीं इसलिए वो चली गई

लूट लेगी जेब वो तेरे रक़ीब की
ख़ुशी की बात है जो घर से चली गई

शराब हराम है इसकी तू बात न कर
इसे पिएगा वो जिसकी अक़्ल चली गई

Nice .

संजय कुमार चौरसिया said...

bahut hi badiya

vandan gupta said...

महफ़िल भी है जवाँ और जाम भी छलक रहे
प्यास अब रही नहीं जैसे तिशनगी चली गयी

वाह …………क्या बात कही है सब वक्त की बात होती है वक्त गुजर जाने पर वो दीवानगी कहाँ रहती है।

डा श्याम गुप्त said...

सुन्दर गज़ल सलीम की क्या कमाल वाह वाह !
क्या टिप्पणी अनवर की क्या जमाल वाह वाह !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत उम्दा ग़ज़ल!

Amit Chandra said...

बहुत खुब। शानदार। हर शेर दाद के काबिल।

Shikha Kaushik said...

वाह ! बहुत खूब ,

Shalini kaushik said...

तुम जो थी मेरे क़रीब तो क्या न था यहाँ 'सलीम'
इश्क़ की गलियों से अब जैसे आवारगी चली गयी
kya kahen saleem ji jaban to jaise shabd dhoondhne chali gayee.
वाह ! बहुत खूब , मुकर्रर इरशाद. सुबहानल्लाह.

Shah Nawaz said...

Waah Saleem Bhai! Gazab andaaz hai gazal ka... Behtreen!

prerna argal said...

तुम चली गयीं तो जैसे रौशनी चली गयी
ज़िन्दा होते हुए भी जैसे ज़िन्दगी चली गयी isqe ki virah main doobi dardmai rachanaa.dil ko choo gai aapki najm.badhaai aapko.


please visit my blog and leave a comment also.aabhaar