कुछ दिन पहले हमने एक नज़्म 'प्यारी माँ' पर पेश की थी . मुशायरे में आने वाले कुछ लोगों की नज़र में वह नहीं आई होगी , इसलिए उसे किस्तवार यहाँ पेश किया जा रहा है. शायरी महज़ दिल बहलाने का साधन नहीं होती बल्कि एक संदेश भी देती है और हमें अँधेरे से उजाले में भी लाती है , जिसके लिए हम प्राय: दुआ और प्रार्थना किया करते हैं .
मौत की आग़ोश में जब थक के सो जाती है माँ
तब कहीं जाकर ‘रज़ा‘ थोड़ा सुकूं पाती है माँ
फ़िक्र में बच्चे की कुछ इस तरह घुल जाती है माँ
नौजवाँ होते हुए बूढ़ी नज़र आती है माँ
रूह के रिश्तों की गहराईयाँ तो देखिए
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ
ओढ़ती है हसरतों का खुद तो बोसीदा कफ़न
चाहतों का पैरहन बच्चे को पहनाती है माँ
एक एक हसरत को अपने अज़्मो इस्तक़लाल से
आँसुओं से गुस्ल देकर खुद ही दफ़नाती है माँ
भूखा रहने ही नहीं देती यतीमों को कभी
जाने किस किस से, कहाँ से माँग कर लाती है माँ
हड्डियों का रस पिला कर अपने दिल के चैन को
कितनी ही रातों में ख़ाली पेट सो जाती है माँ
जाने कितनी बर्फ़ सी रातों में ऐसा भी हुआ
बच्चा तो छाती पे है गीले में सो जाती है माँ
तब कहीं जाकर ‘रज़ा‘ थोड़ा सुकूं पाती है माँ
फ़िक्र में बच्चे की कुछ इस तरह घुल जाती है माँ
नौजवाँ होते हुए बूढ़ी नज़र आती है माँ
रूह के रिश्तों की गहराईयाँ तो देखिए
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ
ओढ़ती है हसरतों का खुद तो बोसीदा कफ़न
चाहतों का पैरहन बच्चे को पहनाती है माँ
एक एक हसरत को अपने अज़्मो इस्तक़लाल से
आँसुओं से गुस्ल देकर खुद ही दफ़नाती है माँ
भूखा रहने ही नहीं देती यतीमों को कभी
जाने किस किस से, कहाँ से माँग कर लाती है माँ
हड्डियों का रस पिला कर अपने दिल के चैन को
कितनी ही रातों में ख़ाली पेट सो जाती है माँ
जाने कितनी बर्फ़ सी रातों में ऐसा भी हुआ
बच्चा तो छाती पे है गीले में सो जाती है माँ
24 comments:
रूह के रिश्तों की गहराईयाँ तो देखिए
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ..
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! माँ के बारे में जितना भी कहा जाए कम है! लाजवाब और भावपूर्ण रचना! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
जाने कितनी बर्फ़ सी रातों में ऐसा भी हुआ
बच्चा तो छाती पे है गीले में सो जाती है माँ
बहुत प्यारी है नज़्म.वाक़ई माँ के प्यार का जवाब नहीं
माँ
जितना भी कहा जाए कम है
भावपूर्ण रचना!
एक एक हसरत को अपने अज़्मो इस्तक़लाल से
आँसुओं से गुस्ल देकर खुद ही दफ़नाती है माँ
भूखा रहने ही नहीं देती यतीमों को कभी
जाने किस किस से, कहाँ से माँग कर लाती है माँ
bahut hi marmik najm.maa aesi hi hoti hai badhaai aapko.
जनाब डॉ. अनवर ज़माल साहब, आदाब ! इस वन्दनीय रचना को पढ़कर इतना भावुक हो गया कि ... आँखें नम आई. शब्द अपनी क्षमता की कगार पर आकार नतमस्तक हो गए हैं. क्या कहूं... ! माँ ! हाँ, ऐसी ही होती है माँ ! बस आपको प्रणाम करता हूँ कि माँ के ममत्व और व्यक्तित्व को कितने सच्चे, मार्मिक और रूह से बयाँ किया है. हर शब्द वन्दनीय क्योंकि वो माँ को याद कर रहे हैं. नमन ! नमन ! नमन !!
वाह वाह अनवर भाई आपको बधाई और आपके उज्जवल भविष्य के लिये शुभकामनाएं
एक ऐसी ग़ज़ल, जिसे बार बार पढ़ने को जी चाहेगा| बहुत बहुत मुबारक़बाद भाई|
'माँ' एक ऐसा विषय है जिस पर अब तक न जाने कितनी बार लिखा / पढ़ा जा चुका है| पर विषय है कि अपनी प्रासंगिकता को उत्तरोत्तर और अधिक सशक्त बनता रहता है|
जनरली, माँ शब्द ज़ह्न में आते ही मुनव्वर राणा जी का ख़याल़ आ जाता है| आप की यह ग़ज़ल भी इस विषय पर प्रशंसनीय है|
आप की क़लम से ऐसे शाहकार की ही उम्मीद रहती है| किसी एक मिसरे या एक शे'र को कोट करना मुमकिन नहीं, पूरी की पूरी ग़ज़ल ही जबरदस्त है| एक बार फिर से बधाई|
हड्डियों का रस पिला कर अपने दिल के चैन को
कितनी ही रातों में ख़ाली पेट सो जाती है माँ ...
माँ तो खुदा का अनमोल तोहफा है ... एक नूर है तो रोशनी देता है ....
आपने मुन्नवर राणा जी के शेरोंकी याद करा दी ... बार बार इस ग़ज़ल को पढ़ने को दिल करता है .... बहुत लाजवाब ....
--सुन्दर गज़ल...
--कुछ नहीं कहा जासकता....वाह!!!!!!!!!!!!!! के अलावा....
bilkul sahi kaha aapne...
marmsprashiya rachna...
मौत की आग़ोश में जब थक के सो जाती है माँ
तब कहीं जाकर ‘रज़ा‘ थोड़ा सुकूं पाती है माँ...
Wonderful couplets !
.
बहुत उम्दा और भावपूर्ण...माँ के लिए जितना कुछ कहा जाये, हमेशा कुछ बाकी रह जाता है..क्या खूब निभाया है इस गज़ल में.
एक एक हसरत को अपने अज़्मो इस्तक़लाल से
आँसुओं से गुस्ल देकर खुद ही दफ़नाती है माँ
इसे कहते है माँ बहुत खूब मुबारक हो
मौत की आग़ोश में जब थक के सो जाती है माँ
तब कहीं जाकर ‘रज़ा‘ थोड़ा सुकूं पाती है माँ...
मन को छू लिया बहुत सुन्दर………..
भूखा रहने ही नहीं देती यतीमों को कभी
जाने किस किस से, कहाँ से माँग कर लाती है माँ
रूह के रिश्तों की गहराईयाँ तो देखिए
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ
ओढ़ती है हसरतों का खुद तो बोसीदा कफ़न
चाहतों का पैरहन बच्चे को पहनाती है माँ
मां तो आखिर मां होती है...
बहुत भावपूर्ण...
आपकी ग़ज़ल पढ़कर अपना मुक्तक याद आ रहा है
आपको साध्ुवाद
अपनी माँ की आँचलों तले देखो ज़रा दिन गुज़ार के।
फूल खुशबुदार जाएंगे खिल दिलों में हरसिंगार के।
व्यस्तता में बीत जाएगी ज़िन्दगी की छोटी-सी डगर,
कोशिशें करो कि कुछ मिलें मोती ममता के दुलार के।
dr ranjan vishada
bareilly
माँ के त्याग का जज़्बा मै सिर्फ इंसानों में ही नहीं...सभी प्राणियों में देखता हूँ...
रूह के रिश्तों की गहराईयाँ तो देखिए
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ bahut achchi ghazal hai.kya kahoon tareef ke liye shabd kam hain mere paas.is blog par pahli baar aai hoon bahut saarthak raha aana.
आपकी इस ग़ज़ल के लिए कोई भी तारीफ छोटी है...बहुत खूब लिखा है आपने...हर्फ़ और सोच दोनों ही बहुत उम्दा...:)
वाह ! अनवर भाई क्या अंदाज है आपके लिखने का !
माँ के बारे में बहुत सटीक वर्णन किया है आपने !
यदि ऐसी ही अच्छी अच्छी बातें आप लिखते रहें तो हो सकता है की जो आपके प्रति मेरा मतभेद है वो दूर हो जाए |
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !!
‘उत्साह‘पूर्ण मदन शर्मा जी ! हम आपसे प्यार करते हैं। हमारी मुहब्बत सच्ची है। इसीलिए आपको यहां खींच लाई और दो-दो बार खींच लाई। जो कुछ ख़लिश रह गई है, समय के साथ वह भी मिट जाएगी। चोट मैंने ही ज़रा सख्त लगा दी थी। इस बात को या तो मैं जानूं या फिर आप जानें, तीसरा कोई सिर ही क्यों न पटख़े, उसे कुछ सिरा हाथ आने वाला नहीं।
आप खुले भी आएं और आप छिपे भी आएं
जैसे भी आएं बस हम पे अपना प्यार लुटाएं
धन्यवाद !
हमारी चैट पर उस दिन बात ब्रेक हुई तो आज तक पूरी न हो सकी। जिस दिन बात हो जाएगी, मैल दिल का धुल जाएगा, सारा का सारा।
ख़ुशी के अहसास के लिए आपको जानना होगा कि ‘ख़ुशी का डिज़ायन और आनंद का मॉडल‘ क्या है ? - Dr. Anwer Jamal
aesi gazal pr likhne ke liye shbd kam hote hain bhavnayen bolti hai aur aankh chhalakti hai
bahut khoob
saader
rachana
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