हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गांव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए
-दुष्यंत कुमार
(1 सितंबर 1933 - 30 दिसंबर 1975)
ग़ज़ल -सतपाल ख़याल
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आंख में तैर गये बीते ज़माने कितने
याद आये हैं मुझे यार पुराने कितने
चंद दानों के लिए क़ैद हुई है चिड़िया
ए शिकारी ये तेरे जाल पुराने कितने
ढल गया दर्द मे...
4 weeks ago
14 comments:
दुष्यंत के कारवां को बखूबी वर्तमान के कुछ ग़ज़लकार आगे बढ़ा रहे हैं.
अच्छी रचना
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (16-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
अजीब सी बात है लोग दूसरों की गज़लें पढकर मुशायरा संचालन कर रहे हैं......
डा. श्याम गुप्ता जी ! हक़ीक़त ज़बान पर आ ही जाती है।
आदमी फ़लसफ़ी बनकर लाख कहता फिरे कि सबके अंदर एक ही आत्मा व्याप रही है और हम सब ब्रह्म हैं और हम सब एक ही हैं। एक ब्रह्म के सिवा दूसरा कोई है ही नहीं लेकिन आदमी जब इस मायाजाल से निकलकर देखता है तो वह तेरा-मेरा और इसका-उसका का भेद करने पर मजबूर हो ही जाता है।
आप अद्वैतवादी होकर भी संचालक को ताना दे रहे हैं कि वह दूसरों की रचनाएं क्यों सुना रहा है ?
आपकी नज़र से अभी दो इंसानों के बीच का भेद ही नहीं मिट पाया और दावा कर रहे हैं गूढ़ ज्ञान का ?
अब हम कहेंगे कि
‘अजीब सी बात है कि आदमी जिस फ़लसफ़े को मानने का दावा करता है, उसमें ही ढलने-चलने के लिए तैयार नहीं है ?‘
MAIN KE YE DAANV MOHABBAT KA GANVAA BHI NA SAKOON
APNI QISMAT KO KISI TAUR HARAA BHI NA SAKOON
AISA PEVAST HUA ROOH MEN WO DUSHMAN E JAAN
MAIN USE NAZRON SE CHAAHOON TO GIRA BHI NA SAKOON
bahut achchi gajal.badhaai aapko
bahut badhiya prastuti..namskar
जमाल साहब--ये अद्वैत, एक ही आत्मा, ब्रह्म--बहुत गहन बातें हैं सब की समझ में नहीं आती....
---ब्रह्म अद्वैत से जब द्वैत् में साकार होता है तभी दुनिया की रचना होती है---अतः मानव अद्वैत नहीं द्वैत में ही जीवित रहता है---- मेरे खाना खाने से अगर आपका पे्ट भर जाता हो तो आज से खाना खाना बन्द कर दीजिये, मैं ही रोज खाता रहूंगा।
---इन्सानों के बीच यदि भेद नहीं तो क्यों आप दुष्यंत की गज़ल लिखते हैं ..मेरी लिखिये न...
"भेद बना है बना रहेगा,
भेद-भाव व्यवहार नहीं हो।"---यह है असली अद्वैत का रूप ....
--- सत्य तो यही है कि मुशायरे/कवि सम्मेलन/ गोष्ठियों में स्वरचित रचनायें ही सुनाई, पढी जाती हैं...अन्य की नहीं....
@ आदरणीय श्याम गुप्ता जी ! हम तो दुई के क़ायल हैं। हम मानते हैं कि ईश्वर ईश्वर है और सृष्टि सृष्टि। सृष्टि कभी ईश्वर नहीं बन सकती और न ही ईश्वर कभी जन्म-मरण, अज्ञान और देशकाल में बंध सकता है। हम दुई के क़ायल हैं जबकि आप ‘अद्वैतवाद‘ के क़ायल हैं। हम दो की भेदबुद्धि रखें तो यह बिल्कुल हमारी मान्यता के अनुकूल है जबकि आप दो में अंतर करें तो यह आपका अपनी मान्यता से विचलन है। कोई गूढ़ बात नहीं है केवल बुद्धि का भ्रम मात्र है।
अब रही बात मुशायरे के संचालक द्वारा अन्य शायरों का कलाम सुनाने की तो अगर आपने कभी मुशायरा सुना हो और अनवर जलालपुरी जैसे किसी शायर को मुशायरे का संचालन करते देखा हो तो आपने देखा होगा कि मुशायरे का संचालक दूसरे शायरों के शेर ही पढ़ता है और ऐसा करना निंदनीय नहीं माना जाता।
कृप्या विचार करें।
धन्यवाद !
..द्वैत अद्वैत की बहस में पड़ते हुये यही कहूँगा कि दुष्यँत की यह चर्चित ग़ज़ल नायाब है !
bahut hi behatareen gazal hai...
dhanyawad Jamal ji...
aage in comments ke baare me kuch na kahunga... warna log kahenge ke
jal rahi thi mahfil or usne ek foonk maar ke mujhe bhi sulga gaya...
@ सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरा मकसद है कि ये सूरत बदलनी चाहिए ...
दुष्यत जी की यह कविता मुझे बहुत प्रिय है ! कविता एक सार्थक सन्देश देती है !
---जमाल साहब...संचालक दूसरों के प्रसिद्ध शे’रों/छंद आदि से आवाहन करता है ...सुनाता नहीं ..वह शायर/ कवि को बुलाने का खूबसूरत तरीका है...
--जब हम अद्वैत्वाद की बात करते हैं तो द्वैत उसमें छिपा हुआ है...."एको सद विप्रा वहुधा वदन्ति."
-- हंगामा खडा किये बिना सूरत कब बदलती है...यही तो दुष्यन्त कुमार का संदेश है...हर हंगामे के पीछे सदुदेश्य होना चाहिये.....
दुष्यन्त कुमार की कविताएँ आइ. ए. एस. प्रतियोगियों में बहुत मशहूर हैं। अरविन्द केजरीवाल को भी कई मौकों पर उनकी कविताओं का सस्वर पाठ करते सुना गया है।
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