दर्दे दिल भागये,
जख्म रास आगये ।
तुमने पुकारा नहीं,
हमीं पास आगये ।
कोई तो बात करो,
मौसमे इश्क आगये ।
जब भी ख्वाब आये,
तेरे अक्स आगये ।
इबादत की खुदा की ,
दिल में आप आगये ॥
जख्म रास आगये ।
तुमने पुकारा नहीं,
हमीं पास आगये ।
कोई तो बात करो,
मौसमे इश्क आगये ।
जब भी ख्वाब आये,
तेरे अक्स आगये ।
इबादत की खुदा की ,
दिल में आप आगये ॥
19 comments:
इबादत की खुदा की ,
दिल में आप आगये ॥
bahut sundar dr.shyam gupt ji.aapki prastuti se abhi hal kee ek film ke song kee pankti bhi yad aa gayee-''dil me rab basta hai''.
बात अच्छी कही तो
हमें तुम भा गये
गर्म लू चली तो
तरबूज़ खा गए
जोश बाक़ी नहीं और
मौसमे इश्क़ आ गए
लिखते रहो यूं ही
जबरन फिर आ गए
bahut khoob shyam ji .Anwar ji ka comment bhi lajawab .vishesh roop se yah -
गर्म लू चली तो
तरबूज़ खा गए
kharbooja kyon nahi .
वाह वाह! बहुत खूब!
प्रेमरस.कॉम
जब भी ख्वाब आये,
तेरे अक्स आगये ।
इबादत की खुदा की ,
दिल में आप आगये ॥bahut pyaari gajal.dil ko choo gai.badhaaai aapko.
छोटी बहर की बहुत उम्दा ग़ज़ल!
बहुत ही खूब ! अच्छा लगा पढ़ कर ..
मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है : Blind Devotion
धन्यवाद..सचिन ..आपका ब्लोग देखा अच्छा लगा...विचार करना प्रत्येक विचारवान व्यक्ति का कर्तव्य है...
--धन्यवाद शालिनी--सही कहा
--बेश्क मन्दिर-मस्ज़िद तोडो बुल्लेशाह कहता,\पर प्यार भरा दिल कभी न तोडो इस दिल में दिलबर रहता...
धन्यवाद शिखाजी--
-तरबूज, खरबूज खरीदे जमाल जी आगये,
खरबूजे हमने खाये,तरबूजे उन को भागये ॥
धन्यवाद प्रेरणा जी....एसा ही होता है जब...मैं मैं न रहा तू तू न रहा वाली स्थिति होती है....
--आपके ब्लोग को देखा...अच्छे भाव हैं...
धन्यवाद शास्त्रीजी व शाह्नवाज़ जी.
..और जमाल जी...मौसमे-इश्क में तो कब्र में पैर लटके वालों में भी जोश आजाता है..हुज़ूर...इरशाद..
लू सहकर भी तरबूज आपको देते चले गये.
गोया कि अपनी ज़िन्दगी संजोते चले गये ॥
क्या है श्याम जी कि अपुन को रूटीन टाइप की टिप्पणियों से कोफ़्त सी होती है । जैसे कि
वाह वाह , भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार आदि आदि ।
इसलिए थोड़ा तरबूज़ हम सनम खा गए
आधा रख छोड़ा था उसे क्या तुम खा गए
@ शिखा जी !
जो भी हाथ लगा
वो हम खा गए
ख़रबूज़ा मिला नहीं
सो तरबूज़ खा गए
कवियों से बचूँ कैसे
भेजा मेरा खा गए
---तो कुछ बचा भी या नहीं अनवर जमाल साहब...या बस तरबूज ही तरबूज़....
--बिल्कुल सही फ़रमाया...कुछ जान तो होनी ही चाहिये टिप्पणी में....घिसी-पिटी में क्या...
http://shayaridays.blogspot.com/
sundar shayari...Richa jee Thanx....
इबादत की खुदा की ,
दिल में आप आगये ॥
यही होत है इश्क मे .......
सही कहा त्रिपाठी जी--
आशिकी की ये डोर भी कैसी है श्याम,
न भूल पायें उन्हें न याद कर पायें ज़नाब।
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