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मुशायरा::: नॉन-स्टॉप

Friday, May 27, 2011

खुदा ....नज़्म..डा श्याम गुप्त .....

न तुम ही तुम हो दुनिया  में,
न हम ही हम हैं इस जग में |
हमीं हैं इसलिए तुम हो,
हो तुम भी इसलिए हम हैं ||


खुदा ने ये खलक सारा,
बनाया है , बसाया है  |
खुदा है इसलिए तुम हो,
खुदा है इसलिए हम हैं ||


रहें मिलकर के हम तुम सब,
खुदा की ऐसी मर्जी थी  |
खुदा तुममें भी हममें भी,
खुदा सबमें समाया है ||


न मंदिर में न मस्जिद में,
न गिरिजा, घर खुदा का है |
खुदा को खुद में ही ढूंढें ,
खुदा हम में नुमांया है ||


खुदी को श्याम 'तू करले,
बुलंद इतना, खुदा कहदे |
मेरी सारी खुदाई ही ,
मांगले आज तू मुझसे ||


खुदी है आईना तेरा,
उसी में खुदा बसता है |
खुदा ने इसलिए ही तो,
खुदा का नाम पाया है ||


3 comments:

prerna argal said...

न मंदिर में न मस्जिद में,
न गिरिजा, घर खुदा का है |
खुदा को खुद में ही ढूंढें ,
खुदा हम में नुमांया है ||bahut badiyaa sher.saari najm hi bahut achchi hai.bahut badhaai aapko.



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DR. ANWER JAMAL said...

ख़ुदा का मक़ाम है
वहमो गुमाँ से आगे
वो तुझमें समाया है
न मुझमें समाया है

नाम आम करते हैं
मंदिर मस्जिद और कलीसा
भाषा अलग हैं लेकिन
भजन उसी का गाया है

डा श्याम गुप्त said...

वो वह्मो-गुमां जब खुदी से छूट जाता है,
तब तुझे खुदा का मकाम, नज़र आता है।
है वहमो-गुमां ’श्याम मुझमें भी औ तुझमें भी-
इसलिये खुदा मुझमें औ तुझमें कहा जाता है॥