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मुशायरा::: नॉन-स्टॉप

Thursday, May 5, 2011

"काश !"

काश ! दिल न होता
तो यहाँ दर्द न होता

काश ! आँखें न होती

तो इनमें आंसू न होते

काश ! ज़िन्दगी न होती

तो यहाँ कोई मौत न होती

काश ! दिन न होता

तो यहाँ कभी रात न होती

काश ! बसंत न होता

तो यहाँ कभी पतझड़ न होता

काश ! प्यार न होता

तो यहाँ कभी जुदाई न होती

काश ! हम न होते

तो यहाँ कुछ भी न होता

12 comments:

DR. ANWER JAMAL said...

तुम्हारे दम से है वुजूद हमारा
जो तुम न होते यहाँ क्या होता

Shalini kaushik said...

काश ! हम न होते
तो यहाँ कुछ भी न होता
yah sabse sahi kaha vandna ji.aabhar.

दर्शन कौर धनोय said...

हम हे और हम से है जमाना
जब हम ही नही तो ,क्या है !

एक अच्छी भावपूर्ण प्रस्तुति ..

Shikha Kaushik said...

वाह ! बहुत खूब , मुकर्रर इरशाद. सुबहानल्लाह

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
वन्दना जी को यहाँ देखकर बहुत अच्छा लगा!
मैं इनका मुशायरे में इस्तकबाल करता हूँ!

Unknown said...

waah ! umda !

वाणी गीत said...

काश! ये होता ,काश! ये न होता
जिंदगी इस काश में ही उलझ कर रह जाती है !

Satish Saxena said...

काश ! हम न होते
तो यहाँ कुछ भी न होता

आनंद आ गया अल्पना मैम ! :-))
शुभकामनायें आपको !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

काश ..... बहुत उलझाने वाला शब्द ...काश यह काश ही न होता :)

Kailash Sharma said...

काश ! हम न होते
तो यहाँ कुछ भी न होता..

बहुत खूब !

Shanno Aggarwal said...

क्या बात ! खूब बढ़िया लिखा है आपने वंदना जी. बधाई.

काश ! आप ना लिखतीं तो ये सब हमें फिर कैसे पढ़ने को नसीब होता :)

डा श्याम गुप्त said...

काश शब्द न होते
यह काश न होता
कहीं कुछ बकवास न होता,
बस आकाश ही आकाश होता ॥