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मुशायरा::: नॉन-स्टॉप

Wednesday, May 18, 2011

बेटी को बचाएं, ख़ुद को बचाएं

मानने वाले हैं वो शैताँ के
नूर के बदले नार लेते हैं
कैसे इंसान हैं जो बेटी को
रहम ए मादर में मार देते हैं

असद रज़ा
asadrnaqvi@yahoo.co.in
रहम ए मादर - माँ का गर्भ

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आज के माहौल में यह रचना बहुत ही महत्वपूर्ण है!

DR. ANWER JAMAL said...

@ आदरणीय शास्त्री जी , शुक्रिया ।