उलझे
( त्रिपदा अगीत के तीन-तीन पद वाली गज़ल---प्रथम शे’र के तीनों पदों में वही अन्त्यानुप्रास , शेष में अन्तिम पद में वही अन्त्यानुप्रास)
क्यों पागल दिल हर पल उलझे,
जाने क्या क्यों ज़िद में उलझे;
क्यों एसे पागल से उलझे ।
तरह तरह से समझा देखा,
पर दिल है उलझा जाता है ;
सुलझा कभी, कभी फ़िर उलझे ।
धडकन बढती जाती दिल की,
कहता बातें किसिम किसिम की;
ज्यों कांटों में आंचल उलझे ॥
( त्रिपदा अगीत के तीन-तीन पद वाली गज़ल---प्रथम शे’र के तीनों पदों में वही अन्त्यानुप्रास , शेष में अन्तिम पद में वही अन्त्यानुप्रास)
क्यों पागल दिल हर पल उलझे,
जाने क्या क्यों ज़िद में उलझे;
क्यों एसे पागल से उलझे ।
तरह तरह से समझा देखा,
पर दिल है उलझा जाता है ;
सुलझा कभी, कभी फ़िर उलझे ।
धडकन बढती जाती दिल की,
कहता बातें किसिम किसिम की;
ज्यों कांटों में आंचल उलझे ॥
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