ऐ मेरे प्यार की मंजिल ऐ मेरी जाने वफ़ा |
मुझको आवाज़ न दो ,अब न ठहर पाऊँगा ||
अब न जुल्फों की घनी छाँव करो यूं मुझ पर,
बात मिलने की भी अब तो न सुबह शाम करो |
अब न देखो मुझे वेताब सी इन नज़रों से,
अब न कोई भी सदा दो, न ठहर पाऊंगा ||
अब मेरा मुल्क. मेरा देश, मेरी माँ धरती,
देती आवाज़ भला कैसे मैं अब रुक पाऊँ|
तेरी जुल्फों की घनी छाँव में, मैं अब कैसे,
प्यार की बात करूँ, चैन से सोजाऊँ ||
ऐ मेरे प्यार की महफ़िल ,ऐ मेरी जाने हया,
मुझको आवाज़ न दो अब न ठहर पाऊँगा ||
मैं तो हूँ प्रेम-पुजारी तेरे मन मंदिर का,
आज पर मांग रहा दान तेरे आँचल का
देश संकट में घिरा माँ ने पुकारा मुझको,
सर्द आहें न भरो, ऐसे न रोको मुझको ||
अपनी नज़रों की कटारी को सजा कर देदो,
तीरे चितवन, दिले तरकश में सजाकर देदो |
शोख ओठों की ही लाली से तिलक कर देना,
अपने आँचल की हवा करके विदाई देना ||
चलदिये जंग की राहों में, वतन की खातिर,
जान भी जाए तो जायेगी वतन की खातिर |
लौट आएं तो, सभी वादे-वफ़ा जी लेना,
वरना अर्थी को मेरी, आँचल की हवा देदेना ||
बन के मैं ख़ाक ज़माने में बिखर जाऊंगा ,
प्यार की बनके महक तुझ में समा जाऊंगा |
अब मेरा देश, मेरा मुल्क, मेरी धरती माँ ,
देती आवाज़ भला कैसे ठहर पाऊंगा ||
ऐ मेरे प्यार की मंजिल ऐ मेरी जाने गुमाँ,
मुझको आवाज़ न दो अब न ठहर पाऊंगा ||
वफ़ा = समर्पण, समर्पित, हया = लज्जा शीलता, गुमां = गर्व, गौरव; खाक =राख, वादे वफ़ा= प्रेम -समर्पण के वायदे
वफ़ा = समर्पण, समर्पित, हया = लज्जा शीलता, गुमां = गर्व, गौरव; खाक =राख, वादे वफ़ा= प्रेम -समर्पण के वायदे
6 comments:
अच्छी पोस्ट ।
तमाम उम्र उलझता रहा हवाओं से
मेरे चराग़ का जैसे यही मुक़द्दर रहा
एक फ़ौजी का अहसास यह होता है ।
श्याम जी, पहली बात तो ये कि आपने कमाल की गजल लिखी है जिसकी आपको बहुत बधाई !
दूसरी बात ये कि आपने तमाम उर्दू शब्दों का मायना हिंदी में लिख दिया इसके मै बहुत शुक्रगुजार हूँ. अब मैं इतनी दूर बैठे अपनी उर्दू जरा इम्प्रूव कर सकूँगी...और आपकी गजलों का आनंद ले सकूँगी.
बन के मैं ख़ाक ज़माने में बिखर जाऊंगा ,
प्यार की बनके महक तुझ में समा जाऊंगा |
अब मेरा देश, मेरा मुल्क, मेरी धरती माँ ,
देती आवाज़ भला कैसे ठहर पाऊंगा ||
बहुत ही सुंदर....
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अपनी नज़रों की कटारी को सजा कर देदो,
तीरे चितवन, दिले तरकश में सजाकर देदो |
शोख ओठों की ही लाली से तिलक कर देना,
अपने आँचल की हवा करके विदाई देना ||
bahut sundar prastuti .
चलदिये जंग की राहों में, वतन की खातिर,
जान भी जाए तो जायेगी वतन की खातिर |
लौट आएं तो, सभी वादे-वफ़ा जी लेना,
वरना अर्थी को मेरी, आँचल की हवा देदेना ||
Shyaam ji rongte khade ho gaye padh kar..behadd unmda nazm likhi hai aapne.
सभी साहबान को धन्यवाद ...
Post a Comment