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मुशायरा::: नॉन-स्टॉप

Sunday, May 22, 2011

मोम का सा मिज़ाज है मेरा / मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ -'Anwer'


आरज़ू ए सहर का पैकर हूँ
शाम ए ग़म का उदास मंज़र हूँ

मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ

हैं लहू रंग जिसके शामो-सहर
मैं उसी अहद का मुक़द्दर हूँ

एक मुद्दत से अपने घर में ही
ऐसा लगता है जैसे बेघर हूँ

मुझसे तारीकियों न उलझा करो
इल्म तुमको नहीं मैं 'अनवर' हूँ

शब्दार्थ
आरज़ू ए सहर-सुबह की ख़्वाहिश , शाम ए ग़म-ग़म की शाम , लहू रंग-रक्त रंजित , शामो सहर-शाम और सुबह ,अहद-युग
तारीकियों-अंधेरों , अनवर-सर्वाधिक प्रकाशमान

32 comments:

Shalini kaushik said...

aaj jana hamne aur kya kahen ,
aap hi yahan sabse badhkar ho.

Shikha Kaushik said...

मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हुँ
bahut khoob .

HAKEEM SAUD ANWAR KHAN said...

Nice post.
http://alhakeemunani.blogspot.com/2011/05/blog-post.html

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मुझसे तारीकियों न उलझा करो
इल्म तुमको नहीं मैं 'अनवर' हूँ

बहुत खूबसूरत गज़ल

Dinesh pareek said...

बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने इस मैं कमी निकलना मेरे बस की बात नहीं है क्यों की मैं तो खुद १ नया ब्लोगर हु
बहुत दिनों से मैं ब्लॉग पे आया हु और फिर इसका मुझे खामियाजा भी भुगतना पड़ा क्यों की जब मैं खुद किसी के ब्लॉग पे नहीं गया तो दुसरे बंधू क्यों आयें गे इस के लिए मैं आप सब भाइयो और बहनों से माफ़ी मागता हु मेरे नहीं आने की भी १ वजह ये रही थी की ३१ मार्च के कुछ काम में में व्यस्त होने की वजह से नहीं आ पाया
पर मैने अपने ब्लॉग पे बहुत सायरी पोस्ट पे पहले ही कर दी थी लेकिन आप भाइयो का सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से मैं थोरा दुखी जरुर हुआ हु
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/

Sadhana Vaid said...

बहुत खूबसूरत गज़ल है ! हर शेर लाजवाब है ! बधाई स्वीकार करें !

Shalini kaushik said...

photo hi bata raha hai ki aapka mom ka sa mizaz pathar kyon hai ?aise shandar prakritik vatavaran me mom jamkar pathar n hoga to kya hoga?

DR. ANWER JAMAL said...

Bagh-e-Bahu
@ शालिनी जी ! आपके दूसरे कमेंट का लुत्फ़ हेते हुए हम आपको यह बताना चाहेंगे कि जो इस फ़ोटो में आप जो बाग़ देख रही हैं, उस बाग़ का नाम है ‘बाग़ ए बाहू‘। यह जम्मू का एक मशहूर बाग़ है। इस बाग़ में इतने प्रेमी जोड़े प्रेम अगन में तपते हुए मिलते हैं कि अच्छे-ख़ासे जमे हुए पत्थर भी मोम की तरह पिघल जाते हैं।
नेट पर आप इस बाग़ के ख़ूबसूरत मनाज़िर (दृश्यों) का लुत्फ़ लेने के लिए निम्न लिंक पर जा सकती हैं :
http://www.panoramio.com/photo/2952280

Mahesh Barmate "Maahi" said...

लाजवाब ग़ज़ल...

आगे कुछ भी कहना मुश्किल सा लगता है,
के "अनवर" ने सारी तारीकियों को ख़त्म कर दिया "माही"...

Bharat Bhushan said...

भई वाह, क्या ख़ूब कहा है. बेहरतरीन ग़ज़ल.

M VERMA said...

बेहतरीन अन्दाज की गज़ल

S.M.Masoom said...

मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ
.
सही कहा है अनवर ने

prerna argal said...

आरज़ू ए सहर का पैकर हूँ
शाम ए ग़म का उदास मंज़र हूँ

मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ
bahut sunder gajal.sunder shabdon ka chayan.badhaai aapko.

Kunwar Kusumesh said...

मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ

शेर अच्छा है. busy था,इसलिए समय से न पढ़ पाया इतना अच्छा शेर. बधाई अनवर जी.

musafir said...

बहुत खूब .........
मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ
ये बात बहुत सलीके से बयाँ की है

डा श्याम गुप्त said...

वाह !!!!!!!!!! क्या बात है ...क्या बयां है...सटीक..लाज़बाव...

मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ...

Suman said...

bahut sunder gajal hai......

udaya veer singh said...

khubsurat nazm..

मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ
shukriya ji

वाणी गीत said...

मोम से मिजाज़ को पत्थर की तोहमतें ...
किसी ने चोट खाई होगी ...
कुछ नाजुक मिजाज़ ओस की बूंदों से टकराकर भी घायल हो जाते हैं ...
खूबसूरत ग़ज़ल ...!

सदा said...

मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ

वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ।

Unknown said...

एक मुद्दत से अपने घर में ही
ऐसा लगता है जैसे बेघर हूँ

खूबसूरत ग़ज़ल, बहुत खूब ,

Vaanbhatt said...

मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ

मुझसे तारीकियों न उलझा करो
इल्म तुमको नहीं मैं 'अनवर' हूँ

मै आप तक आप तक देर में पहुंचा...पर खुश हूँ कि दुरुस्त पहुंचा...

Neelam said...

मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ

मुझसे तारीकियों न उलझा करो
इल्म तुमको नहीं मैं 'अनवर' हूँ

behadd umda.

Khalid meer said...

मुझसे तारीकियों न उलझा करो
इल्म तुमको नहीं मैं 'अनवर' हूँ

Bahot Khoob . Best Blogger ka
Award yu hin Nahin Mila Apko.
Dheron Dili Mubarakbaad

Anju (Anu) Chaudhary said...

एक मुद्दत से अपने घर में ही
ऐसा लगता है जैसे बेघर हूँ
bahut hi umdaa

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

लाजवाब हूँ ग़ज़ल पढ़कर!
सोच रहा हूँ कि इतनी सुन्दर ग़ज़ल पढ़ने से
मैं महरूम कैसे रह गया!

रविकर said...

मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
--
बुधवारीय चर्चा मंच

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुंदर !

Rizwan Aarif said...

Mohabbaton se Jeeta hai dilon ko humne..
Hum wo Sikandar hai jo Lashkar Nahin Rakhtey

Rizwan Aarif said...

Mohabbaton se Jeeta hai dilon ko humne..
Hum wo Sikandar hai jo Lashkar Nahin Rakhtey

Rizwan Aarif said...

Hunooz Me Tha Wo Khul Kar Na Ro Saka Hoga..
Magar Yaqeen Hai Ke Shab Bhar Na So Saka Hoga

Wo Shakhs Jisko Samajhne Me Mujhko Umar Lagi..
Bichhad Ke Mujhse Kisi Ka Na Ho Saka Hoga

Rizwan Aarif said...

Hunooz Me Tha Wo Khul Kar Na Ro Saka Hoga..
Magar Yaqeen Hai Ke Shab Bhar Na So Saka Hoga

Wo Shakhs Jisko Samajhne Me Mujhko Umar Lagi..
Bichhad Ke Mujhse Kisi Ka Na Ho Saka Hoga