शाम ए ग़म का उदास मंज़र हूँ
मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ
हैं लहू रंग जिसके शामो-सहर
मैं उसी अहद का मुक़द्दर हूँ
एक मुद्दत से अपने घर में ही
ऐसा लगता है जैसे बेघर हूँ
मुझसे तारीकियों न उलझा करो
इल्म तुमको नहीं मैं 'अनवर' हूँ
शब्दार्थ
आरज़ू ए सहर-सुबह की ख़्वाहिश , शाम ए ग़म-ग़म की शाम , लहू रंग-रक्त रंजित , शामो सहर-शाम और सुबह ,अहद-युग
तारीकियों-अंधेरों , अनवर-सर्वाधिक प्रकाशमान
32 comments:
aaj jana hamne aur kya kahen ,
aap hi yahan sabse badhkar ho.
मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हुँ
bahut khoob .
Nice post.
http://alhakeemunani.blogspot.com/2011/05/blog-post.html
मुझसे तारीकियों न उलझा करो
इल्म तुमको नहीं मैं 'अनवर' हूँ
बहुत खूबसूरत गज़ल
बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने इस मैं कमी निकलना मेरे बस की बात नहीं है क्यों की मैं तो खुद १ नया ब्लोगर हु
बहुत दिनों से मैं ब्लॉग पे आया हु और फिर इसका मुझे खामियाजा भी भुगतना पड़ा क्यों की जब मैं खुद किसी के ब्लॉग पे नहीं गया तो दुसरे बंधू क्यों आयें गे इस के लिए मैं आप सब भाइयो और बहनों से माफ़ी मागता हु मेरे नहीं आने की भी १ वजह ये रही थी की ३१ मार्च के कुछ काम में में व्यस्त होने की वजह से नहीं आ पाया
पर मैने अपने ब्लॉग पे बहुत सायरी पोस्ट पे पहले ही कर दी थी लेकिन आप भाइयो का सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से मैं थोरा दुखी जरुर हुआ हु
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/
बहुत खूबसूरत गज़ल है ! हर शेर लाजवाब है ! बधाई स्वीकार करें !
photo hi bata raha hai ki aapka mom ka sa mizaz pathar kyon hai ?aise shandar prakritik vatavaran me mom jamkar pathar n hoga to kya hoga?
Bagh-e-Bahu
@ शालिनी जी ! आपके दूसरे कमेंट का लुत्फ़ हेते हुए हम आपको यह बताना चाहेंगे कि जो इस फ़ोटो में आप जो बाग़ देख रही हैं, उस बाग़ का नाम है ‘बाग़ ए बाहू‘। यह जम्मू का एक मशहूर बाग़ है। इस बाग़ में इतने प्रेमी जोड़े प्रेम अगन में तपते हुए मिलते हैं कि अच्छे-ख़ासे जमे हुए पत्थर भी मोम की तरह पिघल जाते हैं।
नेट पर आप इस बाग़ के ख़ूबसूरत मनाज़िर (दृश्यों) का लुत्फ़ लेने के लिए निम्न लिंक पर जा सकती हैं :
http://www.panoramio.com/photo/2952280
लाजवाब ग़ज़ल...
आगे कुछ भी कहना मुश्किल सा लगता है,
के "अनवर" ने सारी तारीकियों को ख़त्म कर दिया "माही"...
भई वाह, क्या ख़ूब कहा है. बेहरतरीन ग़ज़ल.
बेहतरीन अन्दाज की गज़ल
मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ
.
सही कहा है अनवर ने
आरज़ू ए सहर का पैकर हूँ
शाम ए ग़म का उदास मंज़र हूँ
मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ
bahut sunder gajal.sunder shabdon ka chayan.badhaai aapko.
मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ
शेर अच्छा है. busy था,इसलिए समय से न पढ़ पाया इतना अच्छा शेर. बधाई अनवर जी.
बहुत खूब .........
मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ
ये बात बहुत सलीके से बयाँ की है
वाह !!!!!!!!!! क्या बात है ...क्या बयां है...सटीक..लाज़बाव...
मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ...
bahut sunder gajal hai......
khubsurat nazm..
मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ
shukriya ji
मोम से मिजाज़ को पत्थर की तोहमतें ...
किसी ने चोट खाई होगी ...
कुछ नाजुक मिजाज़ ओस की बूंदों से टकराकर भी घायल हो जाते हैं ...
खूबसूरत ग़ज़ल ...!
मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ
वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ।
एक मुद्दत से अपने घर में ही
ऐसा लगता है जैसे बेघर हूँ
खूबसूरत ग़ज़ल, बहुत खूब ,
मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ
मुझसे तारीकियों न उलझा करो
इल्म तुमको नहीं मैं 'अनवर' हूँ
मै आप तक आप तक देर में पहुंचा...पर खुश हूँ कि दुरुस्त पहुंचा...
मोम का सा मिज़ाज है मेरा
मुझ पे इल्ज़ाम है कि पत्थर हूँ
मुझसे तारीकियों न उलझा करो
इल्म तुमको नहीं मैं 'अनवर' हूँ
behadd umda.
मुझसे तारीकियों न उलझा करो
इल्म तुमको नहीं मैं 'अनवर' हूँ
Bahot Khoob . Best Blogger ka
Award yu hin Nahin Mila Apko.
Dheron Dili Mubarakbaad
एक मुद्दत से अपने घर में ही
ऐसा लगता है जैसे बेघर हूँ
bahut hi umdaa
लाजवाब हूँ ग़ज़ल पढ़कर!
सोच रहा हूँ कि इतनी सुन्दर ग़ज़ल पढ़ने से
मैं महरूम कैसे रह गया!
मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
--
बुधवारीय चर्चा मंच ।
बहुत सुंदर !
Mohabbaton se Jeeta hai dilon ko humne..
Hum wo Sikandar hai jo Lashkar Nahin Rakhtey
Mohabbaton se Jeeta hai dilon ko humne..
Hum wo Sikandar hai jo Lashkar Nahin Rakhtey
Hunooz Me Tha Wo Khul Kar Na Ro Saka Hoga..
Magar Yaqeen Hai Ke Shab Bhar Na So Saka Hoga
Wo Shakhs Jisko Samajhne Me Mujhko Umar Lagi..
Bichhad Ke Mujhse Kisi Ka Na Ho Saka Hoga
Hunooz Me Tha Wo Khul Kar Na Ro Saka Hoga..
Magar Yaqeen Hai Ke Shab Bhar Na So Saka Hoga
Wo Shakhs Jisko Samajhne Me Mujhko Umar Lagi..
Bichhad Ke Mujhse Kisi Ka Na Ho Saka Hoga
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