तुम तो खुशबू हो फिजाओं में बिखर जाओगे ,
मैं तो वो फूल हूँ अंजाम है मुरझा जाना ||
मैं तो इक प्यास हूँ तुम कैसे समझ पाओगे,
बन के अहसास मेरे सीने में समाते जाना |
तुम तो झोंका हो हवाओं में लहर जाओगे,
टूटा पत्ता हूँ, मुझे दूर है उड़ते जाना |
बन के सौंधी सी महक, माटी को महकाओगे,
मैं तो बरखा हूँ मुझे माटी में है मिल जाना |
तुम तो बादल हो ज़माने में बरस जाते हो,
मैं हूँ बिजली मेरा अंजाम, तड़प गिर जाना |
तुम तो सागर हो ज़माना है तेरे कदमों में ,
मैं वो सरिता हूँ, मुझे दूर है बहते जाना |
तुम तो सहरा हो, ज़माना है तेरी नज़रों में,
सहरा की बदली हूँ, अंजाम है उड़ते जाना |
तुमने है ठीक कहा, मैं तो इक सहरा ठहरा ,
शुष्क और तप्त सी रेत का दरिया ठहरा |
मैं तो सहरा हूँ , अंजाम है तपते जाना,
तुम जो बदली हो तो इस दिल पे बरस के जाना |
सहरा के सीने में भी मरुद्यान बसे होते हैं,
बन के हरियाली छटा उसमें ही तुम बस जाना |
तुमने है ठीक कहा, मैं तो हूँ सागर गहरा,
मेरा अंजाम किनारों से है बंध कर रहना |
तुम ये करना, मेरे दिल से मिलते रहना ,
बन के दरिया मेरे सीने में समाते जाना |
हम जो बन खुशबू , फिजाओं में बिखर पायेंगे,
फूल हो तुम तो ज़माने में सुरभि बिखराना ||
सहरा =रेगिस्तान , फिजां = मौसम , अंजाम = परिणाम