Saturday, April 30, 2011
खुद को तसल्ली देता रहा
कांपती इंसानियत
कुछ कतये... डा श्याम गुप्त....
Friday, April 29, 2011
खुशामद भी जरूरी है
खुशामद की नजारत दुनिया में सभी करते हैं
जो कहते हैं नहीं करते वो झूठ बोला करते हैं l
कुछ लोग पीठ पीछे तो बद्दुआ दिया करते हैं
फिर जरूरत होने पे खुशामद किया करते हैं l
तौहीन करके अक्सर हँसते हैं लोग जिनपर
खुदगर्जी में उनके आगे नाक रगड़ा करते हैं l
रखते हैं बड़ा अपनापन खुशामद करने वाले
खुशी के मौकों पर वो दिल में जला करते हैं l
ऐसे मतलब परस्तों पर हँसती है खूब दुनिया
ऐसे अहसान फरोशों से लोग बचा करते हैं l
पर आपस में प्यार हो और झगड़ा हो जाये
तब भी तो मनाने में खुशामद ही करते हैं l
तो तरीके भी होते हैं कितने ही खुशामद के
बख्त आने पर ही उनके जलवे दिखा करते हैं l
खुशामद की नजाफत में हर कोई सलामत हो
जो कहते हैं नहीं करते वो झूठ बोला करते हैं l
- शन्नो अग्रवाल
आशनायी है...गज़ल...ड श्याम गुप्त....
Thursday, April 28, 2011
तुझे फुर्सत नहीं
तुझे फुर्सत नहीं है मेरे लिये
मेरी दुनिया में भी अँधेरे हैं l
तेरे ख्यालों में मैं हूँ या नहीं
पर तेरे ख्याल मुझको घेरे हैं
तेरा दीदार भी कभी हो जाये
इस उम्मीद में सजदे मेरे हैं l
तेरी मेहरबानियाँ हुईं हैं औरों पे
तेरे करिश्मों से हम हैरत में हैं
है इंतज़ार हमें तेरे फरमानों का
तेरा नूर तेरी तकवियत में है l
ये सारी कायनात है तेरे बूते पे
पर जीस्त में रंगे-गुलिस्तां नहीं हैं
तेरे सिवा कोई भी नहीं अपना
गमे-हयात में कोई अहबाब नहीं हैं l
मेरी साँसों में है इबादत तेरी
अपने अश्कों के फूल बिखेरे हैं
तेरी चाहत का मुझे पता नहीं
मेरी जीस्त के तुझसे ही सबेरे हैं l
तुझे फुर्सत नहीं है मेरे लिये
मेरी दुनिया में भी अँधेरे है l
-शन्नो अग्रवाल
मंज़िल का कुछ सुराग़ नहीं Shayri
इंसानियत को क़त्ल तो खुद कर रहे हैं लोग
इल्ज़ाम दूसरों पे मगर धर रहे हैं लोग
मंज़िल का कुछ सुराग़ नहीं, क़ाफ़िला नहीं
तारीकियों में फिर भी सफ़र कर रहे हैं लोग
-असद रज़ा
यह बंद आज उर्दू अख़बार राष्ट्रीय सहारा में पढ़ा और अच्छा लगा तो इसे आपके लिए यहां ले आया। इसी कॉलम के ऊपर कुछ नसीहतें भी लिखी हैं। ये भी मुफ़ीद मालूम हुईं। इन्हें आप अपनी कविता के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाएं तो अच्छा रहेगा।
1. एक अंधा अगर दूसरे अंधे को रास्ता बताएगा तो दोनों ग़ार में गिरेंगे।
2. तीन चीज़ों से आदमी को दुनिया में मुश्किल पेश आती है, बीमारी, तवंगरी (समृद्धि) और बेख़ौफ़ी।
3. तीन चीज़ों से ज़िंदगी आराम से गुज़रती है, सेहत, तवंगरी और बेख़ौफ़ी।
4. खुशामद करने वाला और उसे सुनकर ख़ामोश रहने वाला, दोनों कमीने हैं और दोनों एक दूसरे को धोखा देते हैं।
Wednesday, April 27, 2011
जो बिछड़ जाते हैं ..
Tuesday, April 26, 2011
एक त्रिपदा गज़ल....डा श्याम गुप्त.....
मीना कुमारी जी एक बार फिर
Monday, April 25, 2011
तटबंध होना चाहिये.....डा श्याम गुप्त...
साहित्य सत्यं शिवं सुन्दर भाव होना चहिये ।
साहित्य शुचि शुभ ग्यान पारावार होना चाहिये ।
समाचारों के लिये अखबार छपते रोज़ ही,
साहित्य में सरोकार-समाधान होना चाहिये।
आज हम उतरे हैं इस सागर में कहने को यही,
साहित्य हो या कोई सागर गहन होना चाहिये ।
चित्त भी हर्षित रहे, नव-प्रगति भाव रहें यथा,
कला सौन्दर्य भी सुरुचि शुचि सुष्ठु होना चाहिये।
क्लिष्ट शब्दों से सजी, दूरस्थ भाव न अर्थ हों,
कूट भाव न हों, सुलभ संप्रेष्य होना चाहिये ।
ललित भाषा, ललित कथ्य, न सत्य-तथ्य परे रहे,
व्याकरण, शुचि-शुद्ध, सौख्य-समर्थ होना चाहिये ।
श्याम , मतलब सिर्फ़ होना शुद्धतावादी नहीं,
बहती दरिया रहे, पर तटबंध होना चाहिये ॥
शाख़-ए-आशियाँ छूट गया, एक 'परिंदा' टूट गया.
Sunday, April 24, 2011
ग़ज़लें Ghazal
1
वक्त से पहले चराग़ों को जलाते क्यों हो
ऐसी तस्वीर ज़माने को दिखाते क्यों हो
मुझसे मिलने के लिए आते हो आओ लेकिन
मुझको भूले हुए दिन याद दिलाते क्यों हो
ले के उड़ जाएंगी इस को भी हवाएं अबके
अपनी तस्वीर से दीवार सजाते क्यों हो
तुमको यह दुनिया उदासी के सिवा क्या देगी
बेवफ़ा दुनिया से दिल लगाते क्यों हो
भूल बैठे हो क्या पुरखों का आदर्श
अपने ही भाई का तुम खून बहाते क्यों हो
शकील अहमद फरेंक , गोरखपुर
मियां साहब इस्लामिया इंटर कॉलिज
गोरखपुर (उ. प्र.)
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2
जो चश्मो लब का ज़िक्र हो नज़ाकतों की बात कर
किसी से छेड़छाड़ है शरारतों की बात कर
हमारे मुन्सिफ़ों ने दी यज़ीदे वक्त को अमां
है बेगुनाह दार पर अदालतों की बात कर
चले हैं मुफ़लिसों के घर वज़ीर वोट मांगने
ग़रीब की फ़क़ीर की सख़ावतों की बात कर
नगर-नगर को लूट कर अमीरे शहर चल दिया
अमानतों का ज़िक्र क्या ख़यानतों की बात कर
हरेक ज़रपरस्त को न ऐसे आईना दिखा
है ‘शाकिर‘ नवाए जंग अमारतों की बात कर
रफ़ीक़ शाकिर
हाजी नगर, अकोट फ़ाइल, अकोला-444003
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भाई खुशदीप सहगल जी ने हमें नेक नसीहत का एक तोहफ़ा दिया है और उन्होंने अपनी पोस्ट में हमारा नाम भी लिया है। नेकी का बदला नेकी है और अहसान का बदला अहसान के सिवा क्या है ?
कोई आदमी आपको भलाई से याद करे और आपको भली बात कहे, यह चलन पहले तो आम था लेकिन आज की मसरूफ़ ज़िंदगी में यह नायाब है। नेकी और भलाई का बदला नेकी और भलाई से ही दिया जाना चाहिए और पठान किसी का अहसान न तो भूलता है और न ही उसे उतारने में देर ही करता है। लिहाज़ा इन खूबसूरत ग़ज़लों को हम भाई खुशदीप जी की नज़्र करते हैं।
इन लिंक्स पर भी आप नज़र डाल लेंगे तो बंदा आपका शुक्रगुज़ार होगा और साथ ही भाई खुशदीप जी से हमारे मुकालमे का पसमंज़र भी आपके सामने आ जाएगा।
शुक्रिया !
1- अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो क्या उसे औरत की अक्ल से सोचना चाहिए ? Hindi Blogging
2- कैसा होता है एक बड़े ब्लॉगर का वैवाहिक जीवन ? Family Life
मां तुझे हम सलाम करते हैं Salam By Asad Raza
कैसी --कैसी गज़लें --- डा श्याम गुप्त.....
कैसी --कैसी गज़लें --
(पेश है एक -हुश्ने-हज़ारी गज़ल...--जिसमें सभी शे’र मतले के हों...)
शेर मतले का न हो ,तो कुंवारी ग़ज़ल होती है।
हो काफिया ही जो नहीं ,बेचारी ग़ज़ल होती है।
और भी मतले हों ,हुस्ने तारी ग़ज़ल होती है ,
हर शेर ही मतला हो ,हुश्ने-हजारी ग़ज़ल होती है।
हो रदीफ़ काफिया नहीं ,नाकारी ग़ज़ल होती है,
मकता बगैर हो ग़ज़ल वो मारी ग़ज़ल होती है।
मतला भी ,मक्ता भी , रदीफ़-काफिया भी हो ,
सोच -समझ के, लिख के, सुधारी ग़ज़ल होती है ।
हो बहर में ,सुर ताल लय में ,प्यारी ग़ज़ल होती है ,
सब कुछ हो कायदे में ,वो संवारी ग़ज़ल होती है।
हर शेर एक भाव हो, वो जारी ग़ज़ल होती है,
हर शेर नया अंदाज़ हो ,वो भारी ग़ज़ल होती है।
मस्ती में कहदें झूम के, गुदाज़कारी ग़ज़ल होती है,
उनसे तो जो कुछ भी कहें ,मनोहारी ग़ज़ल होती है।
जो वार दूर तक करे , करारी ग़ज़ल होती है,
छलनी हो दिले-आशिक,वो शिकारी ग़ज़ल होती है।
हो दर्दे-दिल की बात, दिलदारी ग़ज़ल होती है,
मिलने का करें वायदा, मुतदारी ग़ज़ल होती है।
जो उस की राह में कहो , इकरारी ग़ज़ल होती है,
कुछ अपना ही अंदाज़ हो,खुद्दारी ग़ज़ल होती है ।
तू गाता चल ऐ यार ! कोई कायदा न देख ,
अंदाजे-बयाँ हो श्याम’ का,वो न्यारी ग़ज़ल होती है॥
----०९.१० AM 24/4/11...
Saturday, April 23, 2011
गज़ल की गज़ल...२..डा श्याम गुप्त...
शेर मतले का रहे ,तो ग़ज़ल होती है ।
शेर मक्ते का रहे, तो ग़ज़ल होती है ।
रदीफ़ और काफिया रहे ,तो ग़ज़ल होती है ,
बहर हो सुर ताल लयहो ,वो ग़ज़ल होती है।
पाँच से ज्यादा हों शेर ,तो ग़ज़ल होती है ,
बात खाशो-आम की हो ,वो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल की क्या बात यारो ,वो तो ग़ज़ल होती है ,
ग़ज़ल की हो बात जिसमें ,वो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल कहने का भी इक अंदाजे ख़ास होता है,
कहने का अंदाज़ जुदा हो तो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल तो बस इक अंदाजे-बयाँ है श्याम ,
श्याम’ तो जो कहदें, वो ग़ज़ल होती है॥
हमारे क़त्ल को कहते हैं ख़ुदकुशी की है Murder
"इंसाफ जालिमों की हिमायत में जायेगा,
ये हाल है तो कौन अदालत में जायेगा."
-राहत इन्दौरी
"वो हादसा तो हुआ ही नहीं कहीं,
अख़बार की जो शहर में कीमत बढ़ा गया,
सच ये है मेरे क़त्ल में वो भी शरीक था,
जो शख्स मेरी क़ब्र पे चादर चढ़ा गया.
"अजीब लोग हैं क्या मुन्सफी की है,
हमारे क़त्ल को कहते हैं ख़ुदकुशी की है."
-हफ़ीज़ मेरठी
"टुकड़े-टुकड़े हो गया आइना गिर कर हाथ से,