तुम कभी तो प्यार से बोला करो।
राज़ दिल के तो कभी खोला करो।।
हम तुम्हारे वास्ते घर आये हैं,
मत तराजू में हमें तोला करो।
ज़र नहीं है पास अपने तो जिगर है,
चाशनी में ज़हर मत घोला करो।
डोर नाज़ुक है उड़ो मत फ़लक में,
पेण्डुलम की तरह मत डोला करो।
राख में सोई हैं कुछ चिंगारियाँ,
मत हवा देकर इन्हें शोला करो।
आँख से देखो-सराहो दूर से,
“रूप” को छूकर नहीं मैला करो।
“रूप” को छूकर नहीं मैला करो।
15 comments:
बहुत बढ़िया गजल -
आभार गुरु जी ||
दिल को छुने वाले भाव..अति सुन्दर
दोनों अज़ीजों का आभार!
आसान अलफ़ाज़ में गहरे भाव.
धन्यवाद.
आँख से देखो-सराहो दूर से,
“रूप” को छूकर नहीं मैला करो।
--- क्या बात है .....
"डोर नाजुक है उडो मत फलक में
पेंडुलम की तरह मत डोला करो "
सरल शब्दों में गहन बात कही है |
आशा
सरल भाषा में सुन्दर ग़ज़ल
Latest postअनुभूति : चाल ,चलन, चरित्र (दूसरा भाग )
दिल को सहलाती बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती,आभार आपका।
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 09/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
लाजवाब सर!
सादर
डोर नाज़ुक है उड़ो मत फ़लक में,
पेण्डुलम की तरह मत डोला करो।
..वाह! बहुत खूब!
अति सुन्दर भाव
अहसासों की एक सुन्दर रचना.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति नारी खड़ी बाज़ार में -बेच रही है देह ! संवैधानिक मर्यादा का पालन करें कैग
शब्द की अहर शपनी पहचान बना दी आपने बहुत सुन्दर
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
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