सुपुर्दे ख़ाक कर डाला तेरी आंखों की मस्ती ने
हज़ारों साल जी लेते अगर दीदार ना होता
हज़ारों साल जी लेते अगर दीदार ना होता
उर्दू में शेर ऐसे लिखा हुआ है-
सुपुर्दे ख़ाक कर डाला तेरी आंखों की मस्ती ने
हज़ारों साल जी लेते अगर तेरा दीदार ना होता
* यह शेर हमने फ़ेसबुक पर देखा था, अच्छा लगा तो मुशायरा पर पेश कर दिया। जनाब कुंवर कुसुमेश जी ने अपनी टिप्पणी के माध्यम से शेर में मौजूद कमी की निशानदेही की है। इसलिए शेर की कमी को दूर कर दिया गया है।
अल्लाह का शुक्र है कि हिंदी ब्लॉगिंग में अच्छे उर्दू शायर मौजूद हैं। कुसुमेश जी का शुक्रिया !
इंटरनेट पर उर्दू शायरी की पारिभाषिक शब्दावली की जानकारी देने वाली कई वेबसाइट्स हैं लेकिन सभी में कुछ कमियां भी हैं। एक वेबसाइट अपेक्षाकृत बेहतर है। इस पर जाकर आप काफ़ी कुछ जान सकते हैं-
सुपुर्दे ख़ाक कर डाला तेरी आंखों की मस्ती ने
हज़ारों साल जी लेते अगर तेरा दीदार ना होता
* यह शेर हमने फ़ेसबुक पर देखा था, अच्छा लगा तो मुशायरा पर पेश कर दिया। जनाब कुंवर कुसुमेश जी ने अपनी टिप्पणी के माध्यम से शेर में मौजूद कमी की निशानदेही की है। इसलिए शेर की कमी को दूर कर दिया गया है।
अल्लाह का शुक्र है कि हिंदी ब्लॉगिंग में अच्छे उर्दू शायर मौजूद हैं। कुसुमेश जी का शुक्रिया !
इंटरनेट पर उर्दू शायरी की पारिभाषिक शब्दावली की जानकारी देने वाली कई वेबसाइट्स हैं लेकिन सभी में कुछ कमियां भी हैं। एक वेबसाइट अपेक्षाकृत बेहतर है। इस पर जाकर आप काफ़ी कुछ जान सकते हैं-
21 comments:
बहरे हज़ज सालिम में कहा गया ये शेर बहुत प्यारा है मगर मिसरा-ए-सानी में "तेरा" शब्द उसे बहर से ख़ारिज कर रहा है.वैसे भी दूसरे मिसरे में तेरा शब्द हश्व है उसकी वहाँ पर कोई ज़रुरत नहीं है. यूँ होना चाहिए इसे:-
सुपुर्दे ख़ाक कर डाला तेरी आंखों की मस्ती ने,
हज़ारों साल जी लेते अगर दीदार ना होता .
पहले मिसरे "सुपुर्दे ख़ाक कर डाला तेरी आंखों की मस्ती ने" में इस्तेमाल किया हुआ "तेरी " शब्द बता रहा है कि दूसरे मिसरे में किसके दीदार की बात की जा रही है,इसीलिए दूसरे मिसरे में इस्तेमाल"तेरा" शब्द "हश्व" है और उसकी वहाँ पर ज़रुरत नहीं है.इस तरह से शेर भी बहर में आ जायेगा.
@ कुंवर कुसुमेश जी ! आपने एक लतीफ़ नुक्ते की तरफ़ ध्यान दिलाया। शुक्रिया !
आज शायरों की बस्ती की तरफ़ सफ़र मुतवक्क़अ है। याद रहा तो इस शेर पर आपकी राय का चर्चा हम उस्ताद शोअरा ए किराम के सामने भी करेंगे।
वाह!
आपके इस उत्कृष्ट प्रवृष्टि का लिंक कल दिनांक 10-09-2012 के सोमवारीय चर्चामंच-998 पर भी है। सादर सूचनार्थ
कुंवर साहब ने बहुत बारीक़ी से विश्लेषण किया है। दिए गए लिंक पर बहुत से तकनीकी जानकारी मिली।
हज़ारों साल जी लेते अगर तेरा दीदार न होता
सुपुर्दे ख़ाक कर डाला तेरी आंखों की मस्ती ने
हज़ारों साल जी लेते अगर (तेरा )दीदार न होता
मियाँ हम यूं ही मर जाते अगर दीदार न होता ,
सुकूने यार न होता ...बढ़िया प्रस्तुति है .......
ram ram bhai
सोमवार, 10 सितम्बर 2012
ग्लोबल हो चुकी है रहीमा की तपेदिक व्यथा -कथा (गतांक से आगे ...)
हमें तो बस इतना ही आता है
सुपुर्दे खाक तो होना ही था आज नहीं तो कल
अच्छा किया खुद नहीं हुऎ जो किया तूने किया !
आज 10/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (यशोदा अग्रवाल जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
आदरणीय शायर से
क्षमा के साथ ।
काँख काँख के जिंदगी, वैसाखी को थाम ।
सदा नाक में दम करे, जीना हुआ हराम ।
जीना हुआ हराम, शाम को दर्शन पाया ।
अंतर का पैगाम, नाम तेरे पहुंचाया ।
पाया नहीं जवाब, सिवा ख़त अंश राख के ।
करो सुपुर्दे ख़ाक, मरुँ न काँख काँख के ।।
उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
सुपुर्दे-खाक़ कर डाला इस दिदाबराई ने..,
हजारों साल जी लेते गर दरो-दीदार न होता.....
@ नीतू सिंघल जी और सभी प्रशंसकों का शुक्रिया.
बहुत बढ़िया!
बढ़िया!
Kunwar Kusumesh ji ne sahi kaha hai
सुपुर्दे ख़ाक कर डाला तेरी आंखों की मस्ती ने
हज़ारों साल जी लेते अगर तेरा दीदार ना होता
बहुत बढ़िया शेर है .....शेर के तकनीकी मामले में मै बिलकुल अनपढ़ हूँ
कुसुमेश जी इन बारीकियों को खूब जानते है !जीवन खाक होने का कोई मलाल नहीं
हजारों साल जीने से कही अच्छा है उन आँखों की मस्ती डूब जाना !
अच्छी पोस्ट !
@ सुमन जी ! आपने यह ख़ूब कहा है कि "जीवन खाक होने का कोई मलाल नहीं हजारों साल जीने से कहीं अच्छा है उन आँखों की मस्ती डूब जाना !"
हमें भी आपसे पूरा इत्तेफ़ाक़ है.
दिल शिकन सोजे-दिलदार न होता..,
दीदार इस कदर दरियाबार न होता.....
कुसुमेश जी बहुत अच्छे जानकार हैं .... बढ़िया प्रस्तुति
कुंवर जी से पूरी तरह सहमत बहुत शानदार प्रस्तुति और त्रुटि निवारण भी
इल पोल्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा ।मेरे नए पोस्ट समय सरगम पर आपका इंतजार रहेगा ।धन्यवाद।
"सुपुर्दे ख़ाक कर डाला तेरी आंखों की मस्ती ने
हज़ारों साल जी लेते अगर (तेरा )दीदार न होता."
---मूल शे'र ही सही है ....तेरा ..हटाने से दीदार का कर्म( ऑब्जेक्ट---किसका दीदार? ) पर पूरा भाव नहीं आता | अतः तेरा आवश्यक है उसके बिना शेर अपूर्ण है |
----हाँ, बहर में लाने के लिए कुछ और किया जा सकता है ..यथा ..
"हज़ारों साल जीते गर तेरा दीदार ना होता |"
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