कुछ लिखकर चुप बैठूँ, या अन्तर्मन में कुछ गाऊँ!
अपनी व्यथा-कथा को, कैसे जग को आज सुनाऊँ!!
गली-गली हैं चोर-लुटेरे, पथ में छाया अँधियारा,
कौन डगर से अपने घर को, सही-सलामत जाऊँ!
अपनी झोली भरते जाते, सत्ता के सौदागर,
मँहगाई की मार पड़ी है, क्या कुछ खाऊँ-खिलाऊँ!
ग़ज़ल-गीत से मन भर जाता, पेट नहीं भरता है,
धन-दौलत की पौध खेत में, कैसे अब उपजाऊँ!
रिश्तेदारी नहीं रही अब, लोभी हुआ ज़माना,
वर के चढ़े भाव ऊँचे, उपहार कहाँ से लाऊँ!
महफिल में सफेद कौओं को, “रूप” परोसा जाता,
बाज़ों से भोली चिड़ियों को, कैसे आज बचाऊँ!
अपनी व्यथा-कथा को, कैसे जग को आज सुनाऊँ!!
गली-गली हैं चोर-लुटेरे, पथ में छाया अँधियारा,
कौन डगर से अपने घर को, सही-सलामत जाऊँ!
अपनी झोली भरते जाते, सत्ता के सौदागर,
मँहगाई की मार पड़ी है, क्या कुछ खाऊँ-खिलाऊँ!
ग़ज़ल-गीत से मन भर जाता, पेट नहीं भरता है,
धन-दौलत की पौध खेत में, कैसे अब उपजाऊँ!
रिश्तेदारी नहीं रही अब, लोभी हुआ ज़माना,
वर के चढ़े भाव ऊँचे, उपहार कहाँ से लाऊँ!
महफिल में सफेद कौओं को, “रूप” परोसा जाता,
बाज़ों से भोली चिड़ियों को, कैसे आज बचाऊँ!
8 comments:
रूपचन्द्र जी का रूप हर रूप में भाता है!
रूपचन्द्र जी का रूप हर रूप में भाता है!
उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
बहुत ख़ूब .
sarthak prastuti aabhar. प्रणव देश के १४ वें राष्ट्रपति :कृपया सही आकलन करें
बहुत ही सुंदर !
बहुत खुबसूरत ........
उम्दा कलाम .
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