ग़ज़ल
शीशा हमें तो आपको पत्थर कहा गया
दोनों के सिलसिले में ये बेहतर कहा गया
ख़ुददारियों की राह पे जो गामज़न रहे
उनको हमारे शहर में ख़ुदसर कहा गया
इक मुख्तसर सी झील न जो कर सका उबूर
इस दौर में उसी को शनावर कहा गया
उसने किया जो ज़ुल्म तो हुआ न कुछ भी ज़िक्र
मैंने जो कीं ख़ताएं तो घर घर कहा गया
मैं ही वो सख्त जान हूं कि जिसके वास्ते
तपती हुई चट्टान को बिस्तर कहा गया
- ताज़ीज़ बस्तवी, रहमत गंज, गांधी नगर, बस्ती
शीशा हमें तो आपको पत्थर कहा गया
दोनों के सिलसिले में ये बेहतर कहा गया
ख़ुददारियों की राह पे जो गामज़न रहे
उनको हमारे शहर में ख़ुदसर कहा गया
इक मुख्तसर सी झील न जो कर सका उबूर
इस दौर में उसी को शनावर कहा गया
उसने किया जो ज़ुल्म तो हुआ न कुछ भी ज़िक्र
मैंने जो कीं ख़ताएं तो घर घर कहा गया
मैं ही वो सख्त जान हूं कि जिसके वास्ते
तपती हुई चट्टान को बिस्तर कहा गया
- ताज़ीज़ बस्तवी, रहमत गंज, गांधी नगर, बस्ती
11 comments:
दोनों के सिलसिले में ये बेहतर कहा गया
साधु-साधु
यह है बुधवार की खबर ।
उत्कृष्ट प्रस्तुति चर्चा मंच पर ।।
आइये-
सादर ।।
उसने किया जो ज़ुल्म तो हुआ न कुछ भी ज़िक्र
मैंने जो कीं ख़ताएं तो घर घर कहा गया
Marhabaa ...
बढ़िया गज़ल
पाषाणों की चोट से, शीशा जाता टूट।
लेकिन वो झुकता नहीं, रहा हलाहल घूँट।।
बढ़िया.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
उसने किया जो ज़ुल्म तो हुआ न कुछ भी ज़िक्र
मैंने जो कीं ख़ताएं तो घर घर कहा गया
ये शेर तो बहुत शानदार है
उसने किया जो ज़ुल्म तो हुआ न कुछ भी ज़िक्र
मैंने जो कीं ख़ताएं तो घर घर कहा गया
बहुत खूब .....
उस आबे-दीद-ए-जोश को मंजर कहा गया..,
बाद आबादाने दस्त को बंजर कहा गया.....
इक ताबदाँ तस्वीर देखकर कहा गया..,
आबमीन गुले-शाख को शज़र कहा गया.....
bahut khoob.
yahan bhi padharen.
http://iwillrocknow.blogspot.in/
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