मां बाप हैं अल्लाह की बख्शी हुई नेमत
मिल जाएं जो पीरी में तो मिल सकती है जन्नत
लाज़िम है ये हम पर कि करें उन की इताअत
जो हुक्म दें हम को वो बजा लाएं उसी वक्त
हम को वो कभी डांट दें हम सर को झुका लें
नज़रें हों झुकी और चेहरे पे नदामत
खि़दमत में कमी उन की कभी होने न पाए
है दोनों जहां में यही मिफ़्ताहे सआदत
भूले से भी दिल उन का कभी दुखने न पाए
दिल उन का दुखाया तो समझ लो कि है आफ़त
मां बाप को रखोगे हमा वक्त अगर ख़ुश
अल्लाह भी ख़ुश होगा, संवर जाएगी क़िस्मत
फ़ज़्लुर्रहमान महमूद शैख़
जामिया इस्लामिया सनाबल, नई दिल्ली
शब्दार्थः
पीरी-बुढ़ापा, नदामत-शर्मिंदगी, इताअत-आज्ञापालन, खि़दमत-सेवा,
मिफ़्ताहे सआदत-कल्याण की कुंजी, हमा वक्त-हर समय
राष्ट्रीय सहारा उर्दू दिनांक 1 अप्रैल 2012 उमंग पृ. 3
Source : http://pyarimaan.blogspot.in/2012/04/blog-post.html
मिल जाएं जो पीरी में तो मिल सकती है जन्नत
लाज़िम है ये हम पर कि करें उन की इताअत
जो हुक्म दें हम को वो बजा लाएं उसी वक्त
हम को वो कभी डांट दें हम सर को झुका लें
नज़रें हों झुकी और चेहरे पे नदामत
खि़दमत में कमी उन की कभी होने न पाए
है दोनों जहां में यही मिफ़्ताहे सआदत
भूले से भी दिल उन का कभी दुखने न पाए
दिल उन का दुखाया तो समझ लो कि है आफ़त
मां बाप को रखोगे हमा वक्त अगर ख़ुश
अल्लाह भी ख़ुश होगा, संवर जाएगी क़िस्मत
फ़ज़्लुर्रहमान महमूद शैख़
जामिया इस्लामिया सनाबल, नई दिल्ली
शब्दार्थः
पीरी-बुढ़ापा, नदामत-शर्मिंदगी, इताअत-आज्ञापालन, खि़दमत-सेवा,
मिफ़्ताहे सआदत-कल्याण की कुंजी, हमा वक्त-हर समय
राष्ट्रीय सहारा उर्दू दिनांक 1 अप्रैल 2012 उमंग पृ. 3
Source : http://pyarimaan.blogspot.in/2012/04/blog-post.html
6 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
आपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 02-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ
बहुत ही अच्छी बात कही है अपने अपने गजल में...
माँ - पिता ही तो हमारे अस्तित्व का आधार है
उनको दुःख देकर हम भला कैसे खुश रह सकते है...
बेहतरीन गजल....
... बेहद खूबसूरत है। बहुत ही अच्छी गजल, बधाई।
माँ बाप की दुआएं हैं जो जीवन की हर कठिनाई आसानी से दूर हो जाती है ... लाजवाब गज़ल ...
बहतु सुन्दर बातें....
सादर आभार.
good & educative.
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