कौन है वो जो हरेक पल की आरज़ू बनकर |
दिल के इन बंद दरीचों में समाये जाता |
किस के दामन की हवा का ये महकता झोंका ,
गमे-दरिया को भी इस दिल के बहाए जाता |
किसने यह छेड़ दिया राग बसन्ती आकर ,
झूमने गाने लगा दिल था जो गम से बोझिल |
किसकी वीणा की मधुर तान ने सरगम छेड़ी,
याद आने लगे तन्हाई में, बीते वो पल |
हो चला झंकृत तन-मन का ये कोना कोना ,
बस गया कौन है ये नाद-अनाहत बनकर |
ये फिजाँ झूम के मचली तो हम ये जान गए,
तू ही इस राह से गुजरा है जुस्तजू बनकर ||
दिल के इन बंद दरीचों में समाये जाता |
किस के दामन की हवा का ये महकता झोंका ,
गमे-दरिया को भी इस दिल के बहाए जाता |
किसने यह छेड़ दिया राग बसन्ती आकर ,
झूमने गाने लगा दिल था जो गम से बोझिल |
किसकी वीणा की मधुर तान ने सरगम छेड़ी,
याद आने लगे तन्हाई में, बीते वो पल |
हो चला झंकृत तन-मन का ये कोना कोना ,
बस गया कौन है ये नाद-अनाहत बनकर |
ये फिजाँ झूम के मचली तो हम ये जान गए,
तू ही इस राह से गुजरा है जुस्तजू बनकर ||
8 comments:
वाह!
बिना मतले की ग़ज़ल!
जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक
बहुत सुन्दर --
प्रस्तुति |
ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद ||
बधाई ||
धन्यवाद रविकर जी व कुशुमेश जी...
---शास्त्रीजी ..गज़ल व नज़्म में अंतर तो समझिए... यह गज़ल नहीं है ...
ये फिजाँ झूम के मचली तो हम ये जान गए,
तू ही इस राह से गुजरा है जुस्तजू बनकर ||
वाह...वाह...वाह...
ये फिजाँ झूम के मचली तो हम ये जान गए,
तू ही इस राह से गुजरा है जुस्तजू बनकर |
bahut sundar bhavabhivyakti .badhai
धन्यवाद शालिनी जी व वर्षा जी ..आभार....पेश है..
"इस राह से तू गुजरा होगा ज़रूर,
तेरे क़दमों के निशाँ निहारते चले गए|..."
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