कविता-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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यदि तुम्हारे घर के
एक कमरे में आग लगी हो
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में सो सकते हो?
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में
लाशें सड़ रहीं हों
तो क्या तुम
दूसरे कमरे...
5 months ago
11 comments:
सज्दों से मगर क्यों हुआ ईमान नदारद
behadd umda.
बगैर सोचे समझे तादाद बढेगी तो गुणवत्ता तो कम होगी ही...
बहुत खूब
सुन्दर रचना
बहुत सच कहा है...
अनवर जमाल जी ! बिना निमंत्रण के आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
आदमी के भीतर से इमान अक़सर ग़ायब होता रहता है. बार-बार की पूजा-नमाज़ उसके अंदर रोशनी करती रहती है ताकि वो देख सके कि उसका इमान अपनी जगह क़ायम है.
vah nahi kah sakti kyonki ye sachchai hai aajki jo sharmnak hai.aapki prastuti sarahniy hai.
वाह ! बहुत खूब ,
बहुत सच कहा है और सुन्दर प्रस्तुति..
bahut khub.....har dil mei bhagwan basta hai......ab aisa kahan kaha jata hai...
अपने घर (दिल) में कहीं ख़ुदा रखना...
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